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चाहिए और न लिखना चाहिए । अर्थात् ज्ञानियों के ज्ञान को अपनी तुच्छ बुद्धि रूप तराजू से नहीं तोलना चाहिए ।
तमेव सच्चं, नीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं जो अरिहन्त भगवन्तों ने कहा है, वह निःसन्देह सत्य है, इस मंत्र से सम्यक्त्व तथा श्रुत की रक्षा करनी चाहिए।
दृष्टिवाद के दस नाम
१. दृष्टिवाद - जिसमें विभिन्न दर्शनों का विस्तृत विवरण हो उसे दृष्टिवाद कहते हैं। इसमें स्वसमय, परसमय तथैव उभय समय का सम्पूर्ण वर्णन मिलता है।
२. हेतुवाद- अनन्त हेतुओं का भाजन होने से, इसे हेतुवाद कहते हैं । परोक्ष में रहे हुए साध्य का ज्ञान कराने वाला हेतु ही हो सकता है। जबकि साध्य अनगिनत हैं, तब हेतु भी अनगिनत हैं। जिससे नियमेन साध्य का ज्ञान होता है, वह हेतु कहलाता है, और जिससे कभी साध्य का ज्ञान हो जाता है और कभी नहीं, वह अहेतु या हेत्वाभास कहलाता है। इस प्रकार जिसमें अनन्त हेतुओं का वर्णन हो, उसे हेतुवाद कहते हैं। अथवा जिसमें अनुमान आदि का वर्णन हो, उसे हेतुवाद कहते हैं, क्योंकि दार्शनिक विचारसरणि में अनुमान की बहुलता होती
है।
३. भूतवाद - जिसमें सद्भूत पदार्थों का सविस्तर वर्णन हो अथवा पांच भूतों का अविभाज्यांश परमाणु व प्रदेश से लेकर महास्कन्ध पर्यन्त जितने भी उनमें धर्म व गुणः विद्यमान हैं, उन सबका जिस में विवेचन हो । अथवा भूत शब्द प्राणी का वाचक भी है, जिसमें आत्मस्वरूप का, आत्मसिद्धि का, जीवों के भेदानुभेदों का महत्त्वपूर्ण विवेचन हो, उसे भूतवाद कहते हैं। .
४. तत्त्ववाद - जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, बन्ध, निर्जरा, मोक्ष इनकी सम्पूर्ण व्याख्या जिसमें पाई जाए, अथवा भिन्न-भिन्न दर्शनकारों ने अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार जितने तत्त्वों को मान्यता दी है, उनमें वस्तुत: कौन - कौन तत्त्वों की कोटि में हैं और कौन-कौन तत्त्वाभास हैं, इन सबका विश्लेषण जिसमें हो उसे तत्त्ववाद कहते हैं। इसे तथ्यवाद भी कहते हैं। इसमें सत्य पदार्थों का स्वरूप बतलाया गया है।
५. सम्यग्वाद-वाद सम्यक् भी होता है और मिथ्या भी, किन्तु दृष्टिवाद महान् होते हुए भी सर्वांश सम्यक् ही है इसलिए इसे सम्यग्वाद भी कहते हैं। यद्यपि 11 अंग भी सम्यग्वाद को लिए हुए हैं किन्तु इसमें सम्यग्वाद की पूर्णता है। वस्तुतत्त्व की अनुकूलता बताने वाले को सम्यग्वाद कहते हैं।
सूत्र
६. धर्मवाद - जिस वाद का केन्द्र धर्म हो, उसे धर्मवाद कहते हैं। स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करने के उपायभूत चारित्र का विवेचन जहां हो तथा आत्म-कल्याण के अमोघ उपाय जिस
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