Book Title: Nalayanam
Author(s): Manikyadevsuri
Publisher: ZZZ Unknown
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________________ IASTIC DIII AISHI AISIlATHII AI अहो ! पुनः कथं तस्या दर्शयिष्याम्यहं मुखम् / किं नाम तद् दिनं भावि यत्र सा में मिलिष्यति // 41 // नूनं चेत् सुगमा देवी तद्वन्धुभ्यस्त्रपा पुनः / मयि तत्र गते खिन्नाः किं वक्ष्यन्ति दमादयः१ // 42 // अधुनैव निजं वृत्तं कथयाम्यनयोः पुरः / नष्टराज्योऽथवाद्यापि स्पष्टीभृय करोमि किम् ? // 43 // यद् वा तदेव मे राज्यं यद् देव्या सह सङ्गमः / केन संभाविता ह्यासीत् जीवन्ती प्राणवल्लभा // 44 // तद् गत्वा दुःखदीनां तां कान्तां संभावयाम्यहम् / अनित्ये जीवलोकेऽस्मिन् दुर्लभः खलु सङ्गमः॥४५॥ तां विहाय वियुक्तोऽहं जीविष्यामि चिरं कियत् / परित्यज्य नदीं नीतो महामत्स्य इव स्थले // 46 // स्पष्टीभूतस्य मे सर्व वशवर्ति महीतलम् / किमशक्तिर्ममाद्यापि जेतुं सर्वान् महीभुजः // 47 // ततस्त्यागात् परं वृत्तं तस्याः श्रुत्वाऽनयोर्मुखात् / चिढविदितमात्मानं करिष्यामि तदाशये // 48 // उच्चस्तरां स्वमथ कुब्जमयोऽपि मेने नीचैस्तरां विहरति स तयोः समीपे / भृयस्तरां विततराज्य इवाजनिष्ट प्राणेश्वरीकुशलजीवितवार्तया सः // 49 // सायन्तनावसरसीमनि तौ च तेने भृमीभुजः सदसि दर्शनमानपूर्वम् / आज्ञापितं तदतुलं नलभीमपुज्योश्चित्रस्थितं चरितमुच्चरतः स्म सम्यक // 50 // इति श्रीमाणिक्यदेवमूरिकृते नलायने षष्ठे स्कन्धे पञ्चमः सर्गः॥ 5 // DISKILATERII III III SAIII AURIISElle

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