Book Title: Nalayanam
Author(s): Manikyadevsuri
Publisher: ZZZ Unknown
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________________ स्कन्धे सर्गः 7 // 157 // WISTELIGII-IIIIIIII IISSILE विश्वामित्रवशिष्ठौ च बकाडी समजायताम् / कोऽयं नलस्य कुब्जत्वे मतिमोहो महात्मनाम् // 30 // कुब्जरूपस्य तारलोचनया चैतत् कथं ज्ञानमभूत् क्वचित् / राज्यभ्रष्टः पतिर्यद् मे म्लेच्छदास्यं करिष्यति // 31 // नलस्य . पूर्व दुर्वाससः शापात् निःस्वीकोऽभूद् न वासवः / नासन् कति तथा दुःस्थाः पार्थिवाः सुरथादयः // 32 // | संदेशान् कस्येयं किल कल्लोलसहसंवासवर्द्धिता / श्रान्तापि तनया वाधैर्दधाति निलये पदम् // 33 // ज्ञात्वा अद्यापि स तु मे भर्ता राज्ञो मित्रतया स्थितः / दाता भोक्ता शुचिः श्रीमान् धर्मात्मा वत्सलो बली // 34 // विलपन्ती तेन कारणगर्भो न विविधव्यङ्गयभङ्गिभिः / प्रकाशीकृत एवात्मा न परं लोकवर्मना // 35 // ला दमयन्ती॥ . मम जन्मनि तद् वाक्यं सा च स्तम्भेऽक्षरावली / ते ते च शकुनाः स्वमास्तास्ताश्च ज्ञानिनां गिरः // 36 // प्रतीतिमिव कुवन्त्यों नित्यं पार्थस्थिता इव / कथयन्त्येव मे भर्तुर्भरतार्द्धस्य संपदम् // 37 // युग्मम् / / | पत्रमुख्यफलोपेतमुत्तुङ्गं कलकोकिलम् / अद्य स्वमे समारूढा सहकारमहं किल // 38 // तत् संप्रति विनीतायां जानन्त्यपि निजप्रियम् / किं करोमिक गच्छामि कस्य वा कथयाम्यहम् // 39 // इति तां रुदतीं पुत्रीं बाष्पाविलविलोचनाम् / आश्वासयितुमारेमे जननी घननीतिवत् // 40 // वत्से ! बिभृहि गाम्भीर्य दैन्यं त्यज धृति भज / त्वामित्थं वीक्ष्य वक्षो मे दलतीव हि भामिनि ! // 41 // श्रुत्वापि कुन्जवृत्तान्तं यच्वं तातेन वारिता / तदत्र कारणं वत्से ! विदत्यपि न वेत्सि किम् ? // 42 // // 157 // IIIIIII ASHISHI

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