________________ प्रथमः सर्गः 113 शेषनागके ऊपर शयन करनेवाले विष्णुसे जैसे समुद्र अधिष्ठित होता है, उसी तरह जो तालाब रथाङ्गों ( चक्रवाकों ) से युक्त, कमलोंके संसर्गसे युक्त, भ्रमरों के भ्रमणका स्थान, शेषनागके सदृश (सफेद) मृणालोंका आधारभूत कमलिनीगुच्छोंसे अनुगत था // 111 / / / टिप्पणी--रथाऽनभाजा-रथस्य अङ्ग (10 10), चक्रमित्यर्थः / रथाङ्ग भजतीति रथाऽङ्गभाक् तेन, रथाऽङ्ग+भज+ण्विः ( उपपद०)। सुदर्शन चक्रको लेनेवाले यह तात्पर्य है, "क्षिणा" इसका विशेषण / दूसरा अर्थ-रथाङ्ग पदका चक्ररूप अब भी होता है "चक्रवाक" (चकवा ) शब्द का एकदेश चक्र है "नामैकदेशे नामपहणम्" अर्थात् नामके एक देश (अवयव ) में भी नामका ग्रहण होता है इस न्यायसे 'चक्र' का अर्थ चक्रवाक और उसका पर्याय "रथाङ्ग" भी चक्रवाक ( चकवा ) का वाचक हुआ है / "कोकश्चक्रश्चक्रवाको रथाङ्गाह्वयनामकः / " इत्यमरः / रथाङ्गान् भजतीति रथाङ्गभाक्, तेन, चक्रवाकसे युक्त यह अर्थ हुआ। यह "बरोजिनीस्तम्बकदम्बेन" इसका विशेषण है। कमलाऽनुषङ्गिणा = अनुषङ्गः अस्य अस्तीति अनुषङ्गी, अनुषङ्ग + इनिः / कमलया अनुषङ्गी, तेन ( तृ० त०) लक्ष्मीसे युक्त, यह पद "क्षिणा" इसका विशेषण है। शिलीमुखस्तोमसखेन = शिलीमुखानां स्तोमः (स० त०) तस्य सखा (सदृशः) तेन (प० त०), इस प्रकार यह "ङ्गिणा" इसका विशेषण है / दूसरे पक्षमें-कमले: अनुषङ्गी, तेन, "सरोजिनीस्तम्बकदम्बेन" इसका विशेषण है / मृणालशेषाऽहिभुवा = शेषश्चाऽसौ अहिः (क० धा० ) / मृणालम इव शेषाऽहिः "उपमानानि सामान्यवचनैः” इससे समासः / “मृणालशेषाऽहिः भूः (शयनाधारः) यस्य सः" तेन (बहु०)। मृणालके समान सफेद शेषनाग में सोनेवाले, इस अर्थ में "ङ्गिणा" का विशेषण है / दूसरे पक्षमें --मृणालशेषाऽहिभुवा=मृणालशेषाऽहिः इव "उपमित व्याघ्रादिभिः सामान्याऽप्रयोगे" इससे समास / मृणालऽशेषाऽहेः भूः (आधारः), (ष० त०) तेन / इस पक्ष में यह 'सरोजिनीस्तम्बकदम्बेन" इसका विशेषण है। सरोजिनीस्तम्बकदम्बकतवात = सरोजिनीनां स्तम्बाः (10 त०) "अप्रकाण्डे स्तम्बगुल्मौ" इत्यमरः / सरोजिनीस्तम्बानां कदम्बं (ष० त०), तस्य कैतवं, तस्मात् (ष० त०)। तडागपक्षमें इसका सम्बन्ध करनेके लिए "सरोजिनीस्तम्ब. कदम्बेन" ऐसा विभक्तिविपरिणाम और पदहान करना चाहिए, तब दो पदोंका समष्टि अर्थ शेष सर्प के समान शुक्लवर्ण मृणालोंके आधारभूत कमलोंके गुच्छों. 80 प्र० ANMOHSITE