________________ काव्य और महाकाव्य के लक्षण अब छात्रों की व्युपित्ति के लिए काव्यका लक्षण और उसके कुछ भेदकी चर्चा की जाती है / कौतीति कविः, "कु शब्दे" धातुसे "अच इ:" इससे 'इ' प्रत्यय होकर 'कवि' शब्द की निष्पत्ति होती है / शब्द करनेवालेको “कवि" कहते हैं / 'कवि' शब्दके तीन अर्य हैं-ईश्वर, विद्वान् और काव्यकी रचना करनेवाला / कवेर्भावः कर्म वा काव्यम् / कविके भाव वा कर्मको "काव्य कहते हैं / 'कवि' शब्दसे "गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्मच" इस सूत्रसे व्यन् प्रत्यय होकर "काव्य" पद निष्पन्न होता है। मम्मटभट्टके काव्यप्रकाशके अनुसार काव्यका लक्षण है"तददोषौ शब्दार्थो सगुणावनलङ्कृती पुनः क्वाऽपि / " अर्थात् दोषरहित, गुण सहित अलङ्कारसे अलङ्कृत शब्द और अर्थको "काव्य" कहते हैं, कहींपर अलङ्कारके न होनेपर भी "काव्य" पदका व्यवहार हो सकता है / सामान्यतः काव्य के दो भेद हैं दृश्य और श्रव्य / अभिनयसे दिखाये जानेवालेको "दृश्य' कहते हैं / इसे रूपक भी कहते हैं / इसके नाटक आदि अनेक भेद होते हैं / सुने जानेवाले काव्यको श्रव्य कहते हैं। इनके दो भेद होते हैं गद्य और पद्य। कथा और आख्यायिका गद्यके भेद हैं / काव्यके दो भेद होते हैं महाकाव्य और खण्डकाव्य / साहित्यदर्पणके अनुसार महाकाव्यका लक्षण इस प्रकार किया गया है “सर्गबन्धो महाकाव्यं तत्रको नायकः सुरा।। सद्वंशः क्षत्रियो वाऽपि धीरोदात्तगुणाऽन्वितः // " 6-40 इत्यादि / अर्थात् सर्गबन्धसे युक्त देवता अथवा उत्तमकुलप्रसूत क्षत्रिय धीरोदात्तगुणसे सम्पन्न नायकसे अङ्कृत और आठ सर्गो से अधिक सर्गयुक्त पञ्च सन्धिसे समन्वित ऋतुवर्णन आदि वर्णन से सम्पन्न काव्यको महाकाव्य कहते है / प्रस्तुत नैषधीयपरित 'महाकाव्य' है, इसमें 22 सर्ग हैं।