Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 1065
________________ नेवधीयचरितं महाकाव्यम् ____ मनुवादः-स्निग्धता के लिये जलगर्भता-कृत्रिम द्रव्य लेप आदि सभी दोषों से रहित यत्न पूर्वक सम्पादित रत्नों के किरण रूप मनोहर वस्त्र धारण करने वाली, और भूषणों में जड़े हीरकों की प्रभा रूप जल में प्रतिबिम्बित अपने स्वरूप सदृश सखियों से समूह से युक्त उस दमयन्ती को // 94 // विलेपनामोदमदागतेन . तत्कर्णपरोत्पलसर्पिणा च / रतीशदूतेन मधुव्रतेन कर्णे रहः किञ्चिदिवोच्यमानाम् // 95 // अन्वयः-विलेपनामोदमुदागतेन तर्कर्णपूरोत्पलसपिणा च सतीशदूतेन मधुव्रतेन कर्णे रसः किञ्चित् वाच्यमानाम् / . ___ व्याख्या-विलेपनामोदमुदा = अङ्गरागसुगन्धानन्देन, आगतेन = आकृष्टेन, तत्कर्णपूरोत्पलसपिणा = तदीयश्रवणोत्पलसमीपोत्पातिना, रतीशदूतेन = कामदूतेन, मधुव्रतेन=मिलिन्देन, कर्णे-श्रवणे, रहः = रहस्यम्, किञ्चित् नल एव सुन्दरतमो वरणीयः, एवं रूपम्, वाच्यमानाम् निगद्यमानाम् / टिप्पणी-विलेपनस्य आमोदः तेन मुद् तया विलेपनामोदमुदा (प० तृ. तत्पु० ) आगतेन तस्याः कर्णपूरोत्पलयो हृत्सपिणा (10 तत्पु० तृ तत्पु० ) रतीशदूतेन, रतीशस्य दूतेन (ष० तत्पु० ) वान्तात्कर्मणि लट् तस्य शानजादेशः। भाव:अङ्गरागाहृतेन श्रुतेरुत्पले गन्धलोभादुपेतेन भृङ्गालिना। कामदूतेन किञ्चिद् रहस्यं मुदा कर्णयो कय्यमानां व तां शोभिताम् / / अनुगः-अङ्ग राग के सुगन्ध के आनन्दानुभव के लिये समागत एवं कर्णोत्पल के पास उड़ते हुये काम के दूत रूप भ्रमरों से कानों में कुछ रहस्य कहीं जाती हुई // 95 // विरोधिवर्णाभरणाश्मभासां मल्लाजिकौतूहलमीक्षमाणाम् / स्मरस्वचापभ्रमचालिते नु ध्रुवो विलासाद् वलिते वहन्तीम् // 96 // अन्वयः-विरोधिवर्णाभरणाश्मभासा मल्लाजिकौतूहलम् ईक्षमाणाम् स्मरस्वचापभ्रमचालिते नु विलासात् वलिते ध्रुवो वहन्तीम् / प्यास्या-विरोधिवर्णाभरणाश्मभासाम् = परस्परविरुद्धनील-पीत-रक्तभूषणमणिश्चीनाम्, मल्लाजिकौतूहलम् =परस्पराभिभवकोतूहलम्, ईक्षमाणाम् =

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