Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 1064
________________ दशमः सर्गः मृतस्याब्धिस्तम् तथोक्तम् / वेलामुद्गच्छतीत्युदेल: ततः करोत्यर्थक-णिजन्तात् संतरि उद्वेल्लयन्ती तां तथोक्तां / / दासीः पुरोगाः सवक्ष्य जातं सखीषु दृष्टासु ततः समेधितम् / स्वाङ्केषु दृष्टेषु निरीक्षकाणाम् तं विस्मयाब्धिं हतिवेलयन्तीम् // अनुवादा यहाँ से 108 श्लोक तक दमयन्ती का वर्णन है, 'पपावपाडू. रपराजराजिः'। इस अन्तिम श्लोक में 'राजराजि' यह कर्ता पद और 'पपो' पह क्रिया पद है देखें-आगे चलने वाली दासियों के देखने पर उत्पन्न एवं सखियों के देखने पर क्रम से बढ़ा हुआ रूपावलोकन से उत्पन्न दर्शकों के विस्मय रस के सागर को अपने शरीर के देखने पर निर्मर्याद ( असीम) बनाती हुई // 93 // स्निग्धत्वमायाजललेपलोपसयत्नरत्नांशुमृजांशुकाभाम् / / नेपथ्यहीरद्युतिवारित्ति-स्वच्छायसच्छायनिजालिजालाम् // 94 // अन्वया-स्निग्धमायाजललेपलोपसपत्नरत्नांशुमृजांशुकामा , नेपथ्यहीरद्युतिवारिवात्तिस्वच्छायसच्छायनिजालिजालाम् / / माल्या-स्निग्धत्वमायाजललेपलोपसयत्नरत्नांशुमृजांशुकाभाम् मासृष्यार्थजलगर्भतादिलेपादिसकलदोषाभावयत्लविशुद्धरत्नकिरणांशुरूपांशुकधारिणीम्, नेपध्यहीरतिवारिवत्तिस्वच्छायसच्छायनिजालिजालाम् वेशरचनाहितहीरककिरणजलस्य स्वप्रतिबिम्ब सदृशकान्तिमन्निजसखीसमूहाम् / . टिप्पनी-स्निग्धत्वाय मायाजलम् रत्नदोषः तदुक्तम् "रागस्त्रासश्च बिन्दुश्च रेखा च बलगर्भता। सर्वरत्नेष्वमीपञ्च दोषाः साधारणाः मताः॥" तथा लेप वर्णोत्कर्षकाद्रव्यविशेषः तयोर्लोपः ताभ्यां सपत्नानि कृत प्रयासानियानि रत्नानि तेषामंशुमजा किरणप्राशस्त्यम् संवांशुकामायस्यास्ताम् तथोक्ताम् ( अनेकतत्पुरुष पुरःसरो बहुव्रीहिः) नेपथ्ये ये हीरा तेषां पुतिरेव वारि तत्र वर्तते इति तवर्तिनी यः स्वच्छाया तस्याः सच्छाया समान कान्तयः या अलयः तस्या जालं यस्यास्ताम् 'विभाषासेने'त्यादिः छायशब्दस्य पुंस्त्वम् / . .. माव:सकलदोषविवर्जितरत्नभामयशुभांशुकशोभि शरीरिणीम् / विविधभूषणसंगतहीरकति बलोल्पनिजच्छवि सत्सखीम् // .

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