Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

View full book text
Previous | Next

Page 1057
________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् करने के लिये वा उनसे विजय प्रशस्ति पत्र देने के लिये सामर्थ्य कैसे हो सकता है // 23 // सपल्लवं व्यासपराशराभ्यां प्रणीतभावादुमयीभविष्णु / तन्मत्स्यपद्माद्युपलक्ष्यमाणं यत्पाणियुग्मं ववृते पुराणम् // 84 // अन्वयः-व्यासपराशराभ्याम् प्रणीतभावात् उभयीभविष्णु तत् मत्स्यपद्माद्युपलक्ष्यमाणं सपल्लवं पुराणं यत्पाणियुग्मं ववृते / / व्याख्या--व्यासपराशराभ्याम् = द्वैपायनपराशराभ्याम्, प्रणीतभावात् = निर्मितत्वात् उभयीभविष्णु = पुराणोपपुराणाभ्यामुभयरूपतामापन्नम्, सपल्लवम् = सविस्तारं, तत् प्रसिद्धम्, मत्स्यपद्माद्युपलक्ष्यमाणम् पुराणम् यत्पाणियुग्मम् -यस्याः वाग्देव्या हस्तयुगलम्, ववृते संजातम् / पक्षे-मत्स्यपद्मध्वजरूपसामुद्रिकोक्तरेखाभिः उपलक्ष्यमाणम् / सपल्लवम् = पल्लवेन सदृशम् किसलयोपमम् / टिप्पणी-व्यासपराशराभ्याम् = व्यासश्च पराशरश्चेति व्यासपराशरी तभ्याम् ( द्वन्द्वः), यद्यपि-अष्टादश पुराणानां कर्ता सत्यवतीसुत इत्युच्यते तथापि 'पुराणं वैष्णवं चक्रे यस्तं वन्दे पराशरम्' इत्युक्तमनुसृत्योक्तम् / उभयीभविष्णु = अनुभयं उभयं भविष्णु इत्युभयीभविष्णु 'अभूततद्भावे' (च्चि प्रत्ययः) भविष्णुश्च भुवश्चेतीष्णुच् प्रत्ययः / मत्स्यपादिनामत उपलक्ष्य माणम् पक्षे-ताशरेखायुक्तम् / सपल्लवम् = पल्लवेन सदृशम्, अव्ययविभक्ती. त्यादिना सादृश्यार्थकसहशब्देन समासः / 'अव्ययीभावे चाकाले' इति सहस्य सादेशः / भावः--पराशरव्यासविनिर्मितत्वात् वैविध्यमाप्तञ्च सपल्लवञ्च / ___ तन्मत्स्य पनादिविलक्षितं तत्पाणिद्वयं ह्यास पुराणवृन्दम् // अनुवादः-व्यास और पराशर से निर्मित होने के कारण पुराण एवं उपपुराण इन दो भागों में विभक्त एवं विस्तारयुक्त मत्स्यपद्मादि पुराण उस सरस्वती का मत्स्य-पद्म-ध्वज-कुलिश-रूप सामुद्रिक तदाकार रेखाओं से युक्त एवं पल्लवसदृश पाणियुगल हुआ // 4 // आकल्पविच्छेदविवजितो यः स धर्मशास्त्रव्रज एव यस्याः। पश्यामि मर्दा श्रुतमूलशाली कण्ठे स्थितः कस्य मुदे न वृत्तः?॥ 85 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 1055 1056 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098