________________ वशमः सर्गः अनुवाद:-अङ्कों से गिने गये अनेक ताराओं के वाचक पद्यों से युक्त बेदाङ्गों में गिनी जाने वाली ज्योतिष विद्या ही सेवा के लिये हारलता के रूप में परिणत हो गयी। हरलता भी निर्मल परिगणित मोतियों से युक्त ( वृत्त ) गोलाकार एवं प्रकाशमान है और अङ्क ( गोद ) में स्थापित है // 79 // अवैमि वादिप्रतिवादिगाढ-स्वपक्षरागेण विराजमाने / तो पूर्वक्षोत्तरपक्षशास्त्रे रदच्छदौ भूतवती यदीयौ // 8 // अन्वयः-वादिप्रतिवादिगाढस्वपक्षरागेण, विराजमाने पूर्वोत्तरपक्षशास्त्रे ग्दीयो तो रदच्छदी भूतवती अवैमि। व्याख्या-वादिप्रतिवादिगाढस्वपक्षरागेण वक्तृप्रतिवक्तृनिविडस्वपक्षाभिनिवेशेन, पक्षे-अन्तःपावरक्तत्वेन विराजमाने = शोभमाने, यदीयो= यस्याः सम्बन्धिनी तौ=प्रसिद्धी रदनच्छदी =ओष्ठी भूतवती= बभूवतुः इति अवमि = उत्प्रेक्षे / अत्रीष्ठावेव वादिप्रतिवादि व्यापारवन्ती पूर्वोत्तरपक्षभूती चेति बोध्यम् / टिप्पणी-वादिप्रतिवादिगाढस्वपक्षरागेण = वादी च प्रतिवादी चेति वादिप्रतिवादिनी ( द्वन्द्वः ) स्वपक्षे रागः (10 तत्पु०) वादिप्रतिवादिनो: गाढः चासो स्वपक्षरागः ( कर्मधारयः) तेन / पक्षे-पूर्वपक्षोत्तरपक्षशास्त्रे पूर्वपक्षश्च उत्तरपक्षश्चेति पूर्वपक्षोत्तरपक्षी ( द्वन्द्वः ), तयोः शास्त्रे (ष० तत्पु०)। भावः-विवदतोविदुषोनिजपक्षयोरतिसमेधितरागवशाहिती / भगवतीरदनच्छदतां गतो विषययोतियो समुपागती॥ अनुवाद-वादी एवं प्रतिवादियों के अपने अपने पक्ष की स्थापना में गाढराग (अधिक आवेश) से.शोभित पूर्व और उत्तर पक्ष के शास्त्र ही उस वाग देवता के दोनों ओष्ठ के रूप में परिणत हो गये / / 80 // ब्रह्मार्थकर्मार्थकवेदभेदात् द्विधा विधाय स्थितयाऽऽत्मदेहम् / चक्रे पराच्छादनचारु यस्या मीमांसया मांसलमूरुयुग्मम् // 81 // अन्वयः-पराच्छादनचारु मांसलम् तस्या करुयुग्मम् आत्मदेहं ब्रह्मार्थकर्मार्थकवेदभेदात् द्विधा विधाय स्थितया मीमांसया कृतम् / . व्याख्या-पराच्छादनचारु = उत्कृष्टवस्त्रावरणमनोहरम्, मांसलम् = पीनम्, तस्याः = भारत्याः उरुयुग्मम् = जङ्घायुगलम् (पराच्छादनचारु ) प्रतिवादिपक्षखण्डनमनोहरम्, आत्मदेहम् = स्वस्वरूपम्, ब्रह्मार्थककर्मार्थकवेदभेदेन द्विधा