Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 1019
________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् लाभलिङ्गम् = जिज्ञासितं यत् स्वेप्सितम् (कर्मधारयः ) तस्य लाभः तस्य लिङ्गम् (10 तत्पु० द्वयम् ) / जानातेः सन्नन्तात् कर्मणि क्तः, ईप्सितस्येत्राप्नोते सन्नन्तात् कर्मणि क्तः, 'आप् ज्ञप्' इत्यादिनेत्वम् ( 10 तत्पुरुषः)। अवापि उपपूर्वादाप्नोतेः कर्मणि लुङ्।। भावः-समागतानां नृपतिर्नृपाणामभेदभावं समुपाचचार / न कोऽपि तत्राकलयत् तदीयं भावं प्रदेया कतमाप कन्या // अनुवाद:-भीम राजा ने समागत राजाओं का इस प्रकार अभेदभाव से सत्कार किया कि कोई भी राजा वहां पर अपनी जानकारी का विषय दमयन्ती के लाभ का चिन्ह परिलक्षित नहीं कर सका। अर्थात् ये दमयन्ती का विवाह किससे करेंगे इस भाव को कोई नहीं जान सका // 29 // अङ्के विदर्भेन्द्रपुरस्य शङ्के न सम्ममी नेष तथा समाजः / यथा पयोराशिरगस्त्यहस्ते यथा जगद्वा जठरे मुरारेः // 30 // अन्वय:-विदर्भेन्द्रपुरस्य अङ्के एषः समाज: अगस्त्यहस्ते पयोराशिः यथा मुरारे: जठरे जगद् वा यथा न ममौ इति न शके तथा एव सम्ममी। व्याख्या-विदर्भेन्द्रपुरस्य = कुण्डिनस्य, अङ्के= उत्सङ्गे, एषः समागतः, समाज:-नृपसमूहः, अगस्त्यहस्ते= कुम्भजमुनिकरतले, पयोराशिः = जलधिः, यथा इव, मुरारे:-श्रीविष्णोः, जठरे-कुक्षी, जगद् = सचराचरो लोकः, वा = अथवा न ममी - न मातिस्म, इति न, अर्थात् अवश्यं मातिस्म, तथा =तेन प्रकारेण, एव सम्ममो = सम्यक् मातिस्म शङ्क= इत्युत्प्रेक्षायां, सर्वे यथाप्रसारमवस्थिता अभवन् / टिप्पणी-विदर्भेन्द्रपुरस्यविदर्णाणामिन्द्रः तस्य पुरम् तस्य विदर्भेन्द्रपुरस्य . (10 तत्पु० ) / अगस्त्यहस्ते = अगस्त्यस्य हस्ते (10 तत्पु०)। भाव:--यथा मुरारेजठरे जगद्वा मुनेरगस्त्यस्य करे समुद्रः / ममी तथा भूपतिचक्रमेतत् ममो विदर्भेन्द्रपुरे समस्तम् / / अनुवा:-जैसे भगवान् विष्णु के उदर में प्रलय काल में सारा चराचर जगत् समा गया और जैसे अगस्त्य मुनि के करतल में समुद्र समा गया, उसी प्रकार समागत समस्त राजसमूह उस कुण्डिनपुर में समा गया // 30 // पुरे पथि द्वारगृहाणि तत्र चित्रीकृतान्युत्सववाञ्छयेव / नभोऽपि किर्मीरमकारि तेषां महीभुजामाभरणप्रभाभिः // 31 //

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