________________
हम गुरु-चरणों में इसलिए जाते हैं ताकि हमारे भीतर पल रहे जन्म-जन्मांतर के अंधकार से छुटकारा मिल जाए। हमारे क़दम प्रकाश की ओर, मुक्ति की ओर बढ़ सकें। हर व्यक्ति गृहस्थ-आश्रम में प्रवेश करता है, पर अधिकांश लोग गृहस्थ-आश्रम के ही बनकर रह जाते हैं। ये तो गुरु ही हैं, जो हमें घर-गृहस्थी के व्यामोह से बाहर निकालने में मदद करते हैं। गुरु हमें गृहस्थ-आश्रम से वानप्रस्थ
और वानप्रस्थ से संन्यास-आश्रम की ओर ले जाते हैं। इस ताकत का नाम ही गुरु है।
किसी व्यक्ति के संत बनने का अर्थ यही है कि ईश्वर का उस पर महान अनुग्रह हुआ है। अब व्यक्ति घर-गृहस्थी में उलझा न रहकर अपने आत्मकल्याण के लिए कुछ कर सकेगा। संत बनना सौभाग्य की बात है। ईश्वर की महती कृपा होती है, तब ही कोई व्यक्ति संत बन पाता है। संत बनना, यानी ईश्वर का अनुग्रह पा लेना। संन्यास लेना ईश्वर के करीब होने का मार्ग है, ब्रह्म-तत्त्व के क़रीब होने का रास्ता है। अमीर आदमी प्रभु के क़रीब नहीं होता। त्यागी व्यक्ति को यह सौभाग्य मिलता है। भोगी व्यक्ति ईश्वर के नहीं, संसार के करीब होता है। भोग हमें ईश्वर से दूर करता है और योग हमें ईश्वर के क़रीब ले जाता है।
ईश्वर की निकटता पाना है, तो भोग उसमें बाधा है। योग और भोग, दोनों एक-दूसरे के बाधक हैं। भोग हमें संसार की तरफ ले जाता है और योग ईश्वर की
ओर। माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहिन, जमीन-जायदाद, तेरा-मेरा ये सब हमें संसार की ओर ले जाने वाले भाव हैं। ईश्वर के प्रति ले जाने वाला भाव यही है कि सभी हमारे संबंधी हैं, सगे हैं, पर सभी सहयात्री हैं। कोई व्यक्ति इस राजमार्ग पर दो घंटे पहले आया और कोई दो घंटे बाद। कुछ दूर साथ भी चलते हैं, सहयात्री बनते हैं, लेकिन फिर बिछड़ जाते हैं। कोई किसी पगडंडी पर बिछड़ जाता है, तो कोई किसी और पगडंडी पर निकल जाता है। यात्री आ रहे है, बिछड़ रहे हैं, लेकिन यह राजमार्ग वहीं का वहीं है।
यह प्रभु का पथ है, जिस पर हम सब चल रहे हैं। पति और पत्नी एक संयोग हैं। ज़मीन-जायदाद संयोग हैं। सारे रिश्ते-नाते संयोग हैं। तब बड़ी हँसी आती है, जब कोई दो सगे भाई आपस में कहते हैं, ये मेरी जमीन और ये तेरी ज़मीन । बीच रास्ते में रस्सी खींच दी जाती है। दीवार बना दी जाती है। इस तरफ मेरी ज़मीन, उस तरफ तेरी ज़मीन। ऊपर बैठा ईश्वर हँसता है, कैसे नादान हैं। क्या तेरा, क्या मेरा, 'सबै भूमि गोपाल की।' तेरे हाथ तो तेरा जीवन भी नहीं है, तो ज़मीन कैसे हो जाएगी।
21
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org