Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 198
________________ तत्त्व मुक्त हो चुका है। प्राण-तत्त्व, ऊर्जा-तत्त्व ने ही इस शरीर को धारण कर रखा था। लाश से तुलना कर लो, लाश देखकर बोध हो जाएगा कि नश्वरता क्या है? जीवन कभी मरता नहीं है, केवल नश्वरता मरती है। जो अनित्य है, वह तो शरीर छोड़कर चला गया है। नदी और नाव साथ-साथ रहते हैं, लेकिन फिर भी जुदा-जुदा होते हैं । गन्ने में मिठास होती है, दूध में मिठास होती है । मिठास इनके भीतर समाहित होती है। इसी तरह देह में प्राण-तत्त्व समाहित है। कोई मछली सागर को ढूँढने निकले, तो हर कोई उसे पागल ही कहेगा। हम भी आत्म-तत्त्व ढूँढ़ने निकले हैं तो पागल ही कहलाएँगे। बाहर कैसे मिलेगा, आत्मा तो हमारे भीतर ही विराजमान है। हम स्वयं आत्मा ही तो हैं । फूल में खुशबू व्याप्त होती है, दिखती नहीं, महसूस होती है। मक्खन दूध में व्याप्त होता है, लेकिन दिखता नहीं है। उसे तकनीक से निकाला जा सकता है। आत्मा को बाहर ढूँढ़ने जाएँगे, तो ऊपरवाला हम पर हँसेगा कि आत्मा तो तुम खुद ही हो और अपने आपको ही ढूँढ़ने जा रहे हो? आत्मा यानी तुम स्वयं । तुम अपनी आत्मा पर ही संदेह कर रहे हो। इसी तरह आदमी भगवान को ढूँढ़ने मंदिर-मस्जिद जा रहा है। आत्मा तो भीतर ही है, लेकिन कषायों ने उसे ढक दिया है। हमें आत्मा पर नहीं, अपने मन के दुगुर्गों पर विजय प्राप्त करनी है। यमराज कहते हैं - 'आत्मा अनित्य है, ज्ञान स्वरूप है। आत्मा न तो मरता है और न ही जन्मता है।' नेवर बोर्न, नेवर डाइड। जन्म-मरण तो शरीर का होता है, साँसों के स्तर पर उदय-विलय होता है। आत्मा तो वही है, शरीर बदल जाता है। आभूषण बनवाते हैं तो सोना तो वही रहता है, आकार बदल जाता है। इस जन्म में किसी को पुरुष का स्वरूप मिला है, तो किसी को नारी का। पिछले जन्म में न जाने क्या स्वरूप था? इस जन्म में पुरुष हैं, अगले जन्म में नारी हो सकते हैं। जन्म-मरण की धारा यूं ही चलती रहती है। पता ही नहीं चलता, कौन, कब, क्या बन जाता है। आज उच्च जाति में हो, अगले जन्म में निम्न जाति में जन्म हो सकता है? ऊँची जाति वाले भी निम्न स्तर के हो सकते हैं और निम्न जाति के लोग भी उच्च विचार के हो सकते हैं । साधना ऐसी करें जिससे हम अपने आत्म-तत्त्व की तरफ बढ़ सकें। गीता में भगवान कहते हैं - नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः । बात वही है जिसे सब ग्रंथ दोहराते हैं। सभी धर्म-शास्त्र एक ही बात कहते हैं। सत्य तो एक ही है, ज्योति एक ही है। हमारा नज़रिया जैसा होगा, हर चीज हमें वैसी ही दिखेगी। ___ कोई धर्म नहीं कहता, झगड़ा करो। प्रेम को, ईमान को, सदाचार को जीवन का हिस्सा बनाओ। हर धर्म इंसान को अच्छा बनने का ही संदेश देता है। यह तो मानव ने बँटवारे कर डाले। जन्म से तो हर कोई इंसान ही होता है। जन्म के बाद वह हिन्दु, मुसलमान या कुछ और बन जाता है। आत्म-तत्त्व तो ऐसा होता है जिसकी नित्यता, नश्वरता, जागरूकता से ही समझ में आती है। जागरूकता आत्मवान् होने के लिए 197 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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