Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 207
________________ पाएगा? सदाचार की ताक़त न होने से व्यक्ति के सारे पुण्य नष्ट हो जाया करते हैं। चरित्र तो वह दीपक है, जो हमें अँधेरे में भी रोशनी दिखाता है। भले ही कितना भी अंधकार क्यों न हो, मनुष्य सात्विक गुणों की बदौलत अपने तमोगुण और रजोगुण पर विजय प्राप्त कर सकता है। अगर हमने अपनी प्रामाणिकता को, चरित्र को खो दिया तो ज़रा सोचो, हमारे पास कौन-सी ताक़त रह जाएगी, कौन-सी दौलत रह जाएगी? विचार कीजिए, क्या पैसा ही सबसे बड़ी ताक़त है ? पैसा न हो, तो क्या इंसान को इंसान नहीं कहेंगे? ताओ के पास चीन के महान सम्राट पहुँचे। उन्होंने ताओ को अपना परिचय दिया, 'मैं अमुक राज्य का सम्राट हूँ।' ताओ ने उनसे कहा, 'तुप सम्राट कैसे हो सकते हो? तुम्हारे पास सब कुछ होते हुए भी तुम्हारा मन अशांत है, तुम्हारा मन पल-पल बदलता रहता है, तुम सम्राट कैसे हो सकते हो? सम्राट तो वह है जिसका मन शांत हो गया है। जिसे किसी चीज़ की चाह नहीं रही। जो दुराचार में प्रवृत्त रहेगा, वह सम्राट बनने के बाद भी असलियत में सम्राट नहीं कहला सकता।' राजपुरोहित अपने मित्र राजा ब्रह्मदत्त के यहाँ सेवाएँ दे रहे थे। एक दिन उनके मन में प्रश्न उठा कि मेरा मित्र मेरे ज्ञान की वजह से मेरा सम्मान करता है या सदाचार की वजह से? उन्होंने खुद का मूल्यांकन किया, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके। इसका पता लगाने के लिए उन्होंने एक प्रयोग किया। उस राज्य के राजदरबार में प्रवेश के लिए बाहर बने कोषालय में प्रतिदिन एक मोहर देनी पड़ती थी। राजपुरोहित इस व्यवस्था से मुक्त थे। लेकिन एक दिन उन्होंने कोषालय में प्रवेश किया और वहाँ कोषाधिकारी के पास बने मोहरों के ढेर में से एक मोहर उठाकर आगे बढ़ गए। कोषाधिकारी ने इस घटनाक्रम को देखा तो विचार में पड़ गए; एक तो राजपुरोहित, दूसरे राजा के मित्र, भला उन्होंने एक मोहर क्यों उठाई? जरूर इसमें कोई गहरी बात है। कोषाधिकारी चुप रहे। अगले दिन राजपुरोहित ने दो मोहरें उठाईं और चलते बने। यह क्रम बढ़ता गया। पाँचवें दिन राजपुरोहित ने मुट्ठी भर मोहरें उठा लीं, तो कोषाधिकारी के आदेश पर सैनिकों ने उन्हें बंदी बना लिया। उन्हें राजा के समक्ष पेश किया गया। राजा आश्चर्य में पड़ गए। मेरे मित्र और इस राज्य के राजपुरोहित का ओहदा सम्भालने वाले व्यक्ति के मन में इतना लालच आया, तो कैसे? वे चुप रहे और दूसरों पर गलत प्रभाव न पड़े, इसलिए उन्होंने राजपुरोहित के पचास कोड़े लगाने का आदेश दिया। कोड़े लगाने को एक सैनिक आगे आया, तो राजपुरोहित ने अपना कुर्ता उतारा और पीठ उस सैनिक की तरफ करके खड़े हो गए। जैसे ही सैनिक कोड़े मारने को प्रवृत्त हुआ, राजपुरोहित हँस पड़े। राजा ने सैनिक को कोड़े लगाने से रोका और राजपुरोहित से उनकी हँसी का कारण पूछा। राजपुरोहित ने पूरा किस्सा बयान किया कि महाराज, मेरे मन में एक शंका उत्पन्न हो गई थी, जिसके समाधान के लिए ही मैंने मोहरें उठाकर ले 206 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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