Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 205
________________ में बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं है। आत्मा की पहचान के रास्ते तभी मिलते हैं, जब हम आस्थापूर्वक यात्रा प्रारम्भ करें। इसके बाद ही आत्मानुभूति के द्वार खुलते चले जाएँगे। आत्मा प्रवचनों, कथाओं को सुनने से प्राप्त नहीं हुआ करती। फिर कैसे प्राप्त हो सकती है ? क्या हम प्रतीक्षा करें, या पुरुषार्थ करें। योगी तो गुफाओं में जाते हैं, वर्षों तप करते हैं। पंचाग्नि तप, हठयोग सहित अनेक तरीके अपनाते हैं लेकिन आत्मा तक कहाँ पहुँच पाते हैं ? सारे प्रयासों का एक ही उद्देश्य होता है, आत्म-तत्त्व को पाना । क्या आत्मा को प्राप्त किया जा सकता है? लोग कहते हैं कि तपस्या में बड़ा आनन्द आता है, लेकिन यह आनन्द उन्हें ही आता है जिनके भीतर प्यास होती है। प्यास की व्यग्रता से ही किसी की चाहत का पता चलता है। एक सियार तालाब पर पानी पीने गया। तालाब में रहने वाली मछली ने सियार से पूछा, 'तुम तो बड़े प्रेम से पानी पी रहे हो। पानी तो मैं भी पीती हूँ, मुझे इतना मज़ा क्यों नहीं आता?' सियार ने मछली की मनोदशा को समझा और अचानक उसे मुँह में पकड़कर बाहर जमीन पर फेंक दिया। मछली बिना पानी के तड़पने लगी। मछली सोचने लगो, यह क्या पागलपन किया मैंने ? मेरी जान पर ही बन आई। यह सियार तो बड़ा नालायक निकला। सियार ने मछली को तड़पते देखा, तो उसे फिर से पानी में डाल दिया। मछली की साँस में साँस आ गई। उसने पानी के दो चॅट पीए, तो पता चला कि प्यास की कीमत क्या होती है ? प्यास होगी, तब ही तो पानी की क़ीमत का पता चलेगा। पानी के प्रति यह व्यग्रता ही पानी की कीमत है। साधकों को याद रखना चाहिए कि ऐसी ही व्यग्रता परमात्मा के लिए पैदा होनी चाहिए। व्यग्रता चाहिए, उत्कंठा चाहिए। प्यास ऐसी होनी चाहिए कि जिसे तृप्त किए बगैर चैन न मिले। एक ऐसी लगन लग जानी चाहिए कि आदमी हर हाल में उसे प्राप्त करेगा; चाहे उसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े। साधना के मार्ग पर ऐसी व्यग्रता होगी, तो मनुष्य के सामने आत्मानुभूति के द्वार खुलते चले जाएंगे। नहीं तो आत्मा को पाना तो दूर, उसके बारे में जानना तक मनुष्य के हाथ में नहीं है। यमराज कहते हैं, 'सूक्ष्म बुद्धि के द्वारा भी न तो यह मनुष्य इस आत्मा को प्राप्त कर सकता है और न ही वह जो बुरे आचरणों से निवृत्त नहीं हुआ है। न वह प्राप्त कर सकता है जो अशांत है, न वह जिसकी मन, इंद्रियाँ आदि संयत नहीं हैं और न वही प्राप्त कर सकता है जिसका मन शान्त नहीं है।' यमराज हमें समझाना चाहते हैं कि जब तक व्यग्रता पैदा न होगी, सिर्फ आत्मा-आत्मा करते रहेंगे तो आत्मा की प्राप्ति नहीं होगी। कड़ी मेहनत, पक्की लगन हो, तो किसी भी चीज को प्राप्त किया जा सकता है, मनचाहा फल प्राप्त किया जा सकता है। हम ऊँचे लक्ष्य बनाएँ, पर उन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करें अन्यथा शेखचिल्ली की तरह केवल सपने ही देखते 204 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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