Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 223
________________ उतरते हैं, तो लगता है स्वयं मृत्युदेव यमराज हमारे सामने उपस्थित होकर हमारे कल्याण की बातें हमें बता रहे हैं । कठोपनिषद् में मृत्युदेव के संदेश हैं । जीव के बारे में, मृत्यु के बारे में जितना बारीक और गहन ज्ञान यमराज को है, और किसी को नहीं हो सकता। स्वयं देवताओं को आत्म-तत्त्व जानना हो, तो बरसों बरस तक समाधि लगानी पड़ती होगी, लेकिन मृत्युदेव तो पलक झपकते आते हैं और हृदय के भीतर रहने वाले आत्म-तत्त्व को लेकर चले जाते हैं । जिस प्रकार कोई बाज किसी चिड़िया पर झपटता है और उसे चोंच में दबा कर फुर्र हो जाता है, उसी तरह यमराज का आना और जाना होता है। यह पलक झपकने जितनी कहानी है। आप सोचते होंगे कि यमराज किसी काले भैंसे पर सवार होकर आते होंगे। यह सिर्फ हमारी खाम-खयाली है । मृत्यु भैंसे जैसी काली और डरावनी होती होगी; इसीलिए हमने इस तरह की कल्पनाएँ कर रखी हैं। लेकिन हमें मृत्यु से निडर हो जाना चाहिए। मृत्यु हमारे मित्र की तरह है । मृत्यु न हो, तो इस बूढ़ी काया को ढोना भारी हो जाएगा। जो व्यक्ति इस पृथ्वीग्रह पर आता है, उसे समय रहते वापस लौट जाना चाहिए। अमरता किस काम की। हर व्यक्ति एक अज्ञात लोक से पृथ्वी ग्रह पर आता है और वापस उसी अज्ञात लोक की ओर लौट जाता है। जीवन एक आँख-मिचौनी की तरह चलता है। बाकी जीवन की सनातन धारा को समझ लें, तो किसका जन्म है और किसकी मृत्यु? न जन्म है, न मृत्यु । जीवन एक शाश्वत धारा है। यह एक अमर तीर्थ-यात्रा है। मृत्युदेव हमें कठोपनिषद् में यही संदेश दे रहे हैं। मृत्युदेव तो हमें इस जर्जर काया से मुक्त कराने आते हैं। साँप से अगर केंचुली उतर जाएगी, तो इससे साँप का ही भला है। जो लोग मृत्यु से डरते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि मृत्यु कभी डरावनी नहीं हो सकती। जो हमें इस दुनिया के मिथ्या जंजालों से मुक्त करती हो, वह भला डरावनी कैसे हो सकती है ? मृत्यु तो हमें मुक्ति देती है। कठोपनिषद् तो यह कहता है कि मनुष्य को मृत्यु के आने से पहले अपने मोक्ष का प्रबंध कर लेना चाहिए ताकि जन्म-मरण का चक्र तो छूटे। कठोपनिषद् तो मृत्युदेव को याद करने का एक बहाना है। कठोपनिषद् तो एक माध्यम है - मृत्यु से मुलाकात करने का। हम रामायण पढ़ेंगे, तो राम के करीब होंगे और कठोपनिषद् पढ़ेंगे, तो मृत्यु की सच्चाई के निकट होंगे। सच्चाई तो यह है कि हर किसी को जीवन और मृत्यु को हमेशा याद रखना चाहिए। तभी हमारे भीतर अनासक्ति का जन्म होगा। पुराने संतों की कहानियाँ हमें बताती हैं कि जीवन में अनासक्ति कहाँ से आती हैं। एक आदमी को पता चलता है कि सात दिन बाद उसकी मृत्यु होने वाली है। वह विचलित हो जाता है, उसका मन किसी काम में नहीं लगता। वह एक संत के पास पहुँचता है । संत उसकी पीड़ा समझकर उसे कहते हैं, 'सात दिन बाद ही मरना है, तो 222 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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