Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 213
________________ पैदा होना मन की उर्वरा धरती पर अच्छी फसल उगाने जैसा है। बुरे विचार आने का अर्थ यह है कि जमीन तो उर्वरा है, लेकिन हमने उस पर कँटीले झाड़ बो दिए हैं। राजा प्रसन्नचन्द्र ने शासन से मन भरने के बाद राज्य पुत्र को सौंप कर संन्यास ले लिया। गुफा में लम्बे समय तक तपस्या की। राजा थे, इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए गुफा के बाहर दो प्रहरी लगा दिए गए थे। एक दिन राजा दोनों प्रहरियों का वार्तालाप सुन लेता है । एक प्रहरी दूसरे से कह रहा होता है, अपने राजा कितने अच्छे हैं ! पुत्र को राजा बनाकर स्वयं तपस्या करने लग गए, लेकिन ये नहीं जानते कि उनके पुत्र की अनुभवहीनता का लाभ उठाकर पड़ोसी राजा हमारे राज्य पर हमले की तैयारी कर रहा है। यह सुनकर राजा का मन उचाट हो जाता है। भीतर-ही-भीतर विश्लेषण प्रारम्भ हो जाता है, मेरे होते मेरे पुत्र पर कौन आक्रमण कर सकता है? मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। विचारों का उद्वेग इतना तेज हो जाता है कि बुद्धि रूपी सारथी रथ से अलग हो जाता है। केवल मन रह जाता है और उस पर किसी का नियंत्रण नहीं रहता। अब राजा के मन-ही-मन में घोड़े दौड़ने लगते हैं । युद्ध प्रारम्भ हो जाता है। घमासान लड़ाई होने लगती है। मैदान सैनिकों की लाशों से पट जाता है । एकाएक राजा को बोध होता है, अरे मैं तो गुफा में बैठा तपस्या कर रहा था, यह युद्ध क्षेत्र कहाँ से आ गया? कौन बेटा, कैसा राज्य? मैं ये कहाँ से युद्ध के बारे में सोचने लगा? मैं तो प्रभु के मार्ग पर चल पड़ा हूँ। पीछे क्या हो रहा है, मुझे इससे क्या लेना-देना। मैं इसमें क्यों उलझू ? दुर्विचार फिर से सद्विचार में बदल गए। पहले नाला था, अब गंगा हो गया। ___ यही होता है। मन के बहकावे में आ जाते हैं तो मन हमें फिसलाते हुए जाने कहाँ-कहाँ ले जाता है। प्रसन्नचन्द्र के मन में आने वाले दुर्विचारों पर तत्काल रोक लग गई। जैसे ही बुद्धि रूपी सारथी ने अपना काम शुरू किया, मन और इंद्रियों पर लगाम कसने लगी और शरीर रूपी रथ के घोडे सही दिशा में चलने लगे। इसलिए कहते हैं, बाहर-बाहर तो खूब संवर लिए, भीतर का शृंगार बाकी है। भीतर से संस्कारित होना ज़रूरी है। झड़ गई पूँछ, झड़ गए रोम, पशुता का झड़ना बाकी है। बाहर से तो शिक्षा खूब प्राप्त कर ली, अब भीतर की पढ़ाई करना बाकी है। भीतर को संस्कारित करना आवश्यक है। इसलिए विचारों को नई दिशा दो। संकल्प करो - मुझे अपने मन के दुर्विचारों को बदलना है। मन गलत रास्ते पर जाएगा तो गलत परिणाम देगा और सही रास्ते पर जाएगा, तो अच्छे परिणाम देगा। अच्छे रास्ते पर जाएगा, तो कृष्ण और गांधी का जन्म होगा और बुरे रास्ते पर जाएगा, तो कंस और गोडसे उभर कर आएँगे। ___मन तो अलबेला है। उस पर नियंत्रण कर लेने वाला वास्तव में संत कहलाने योग्य है। मन में अच्छी और बुरी, दोनों तरह की संभावनाएँ उभर सकती हैं। इसलिए जब भी 212 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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