Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 216
________________ वासना भी मन का उद्वेग ही तो है। वासना में भी ऊर्जा खर्च होती है। वासना के दौरान जगने वाली ऊर्जा अनियंत्रित हो जाए, तो व्यक्ति को अंधा बना दिया करती है। दुनिया में सबसे बड़ा अंधा कौन है ? वह जो जन्म से अंधा है या काम का अंधा है ? काम में जो लिप्त है, उससे बड़ा अंधा कोई नहीं हो सकता। कामांध प्राणी जन्मांध से भी बड़ा अंधा होता है। वासना व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक नहीं है, लेकिन तब ही तक, जब तक वह अनियंत्रित नहीं होती। सृष्टि के संचालन को गति देने के लिए वासना का उपयोग करेंगे, तो इसे कतई अनुचित नहीं कहा जा सकता, लेकिन कोई भोग को ही ज़िंदगी बना ले, तो उसकी वासना उसके लिए दुखदायी बन जाया करती है। सुकरात ने उनके पास पहुँचे एक युवक से यही तो कहा था कि भोग जीवन में एक बार किया जाए तो पर्याप्त है, लेकिन युवक की जिज्ञासा शांत नहीं हुई। उसने पूछा कि एक बार से मन न भरे तो भोग जीवन में कितनी बार किया जा सकता है ? सुकरात ने उसे जीवन में दो बार या वर्ष में एक बार अथवा माह में एक बार भोग की सलाह दी; लेकिन युवक को संतोष न हुआ। उसने फिर सवाल पूछ लिया। इस बार सुकरात का जवाब था कि सिर पर कफ़न बाँध लो, फिर चाहे जितनी बार भोग करो। वाकई इंसान वासना का पुतला बन चुका है। वासना उसके रग-रग में समा चकी है। वह उससे उपरत नहीं हो पा रहा। हमारी शिक्षा-पद्धति भी ऐसी हो गई है कि भोग कम करने का संदेश नहीं देती। आजकल हर तरफ भोग को, वासना को बढ़ाने के सामान बढ़ते जा रहे हैं। फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में दिखाए जाने वाले अश्लील दृश्य हमारे मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। लोग अब शुद्धि की तरफ नहीं जा रहे । काम-वासना हमारे जीवन से इस तरह चिपट गई हैं जैसे कोई जोंक चिपट जाया करती है। मन को शुद्ध नहीं कर पा रहे हैं इसीलिए घर में बहन भी सुरक्षित नहीं है, पड़ोसन सुरक्षित नहीं है। घरों में दीवारों के पीछे होने वाला व्यभिचार हमें कहाँ ले जाएगा? वासना सात्विकता में कैसे बदले - यह बताने वाला भी कोई नहीं है। बड़ेबड़े ज्ञानी भी वासना की चपेट में आ चुके हैं, आम आदमी की बात तो छोड़ ही दें। जो स्वयं के नियंत्रण में रह पाता है, वही इंसान सच्चा इंसान कहलाने का अधिकारी है। मनुष्य के मन की तीसरी स्थिति है भावना। प्रेम, करुणा, दया, भाईचारा - ये सब हमारी भावनाएँ हैं । जब कोई हमारे सामने निमित्त बनकर आता है, तो हमारे भीतर जिस तत्त्व का उदय होता है, वही भावना कहलाता है। किसी को परेशान देखकर उसके प्रति हमारे मन में करुणा, दया जगती है। हम रास्ते पर जाते समय किसी जानवर को 215 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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