Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 219
________________ एक सम्राट की कहानी मशहूर है। एक बार वह युद्ध करते समय जंगल में भटक गया। दुश्मनों से बचते-बचाते वह एक झोंपड़े तक पहुँचा । वहाँ एक बुढ़िया रहती थी। उसने भूखे-प्यासे सम्राट के लिए भोजन बनाया । सम्राट वहाँ दो दिन तक छिपा रहा, तीसरे दिन उसके सैनिकों ने उसे ढूँढ़ लिया, तो सम्राट अपने महल चला गया। महल में पहुँचते ही उसने आदेश जारी किया कि जंगल में उस बुढ़िया का झोंपड़ा गिरा दिया जाए और वहाँ एक पक्का मकान बना दिया जाए । सम्राट उस झोंपड़े में ढाई दिन तक रहे थे इसलिए उसके मकान को ढाई दिन का झोंपड़ा नाम दिया गया। इसे कहते हैं, किसी का ऋण चुकाना । I अपने संकल्प मज़बूत कर लोगे, तो मौत भी आएगी तब भी परवाह नहीं रहेगी। मृत्युदेव के समक्ष घबराने की आवश्यकता नहीं है । उनके संदेश तो हमारे जीवन को सार्थक परिणाम देते रहेंगे । चौबीस घंटों में जितना समय सार्थक काम में खर्च करते हो, उतने घंटे ही तुम्हारा वास्तविक जीवन कहलाएगा। हर दिन अपने कार्यों का मूल्यांकन करते रहें। अपनी आलोचना खुद करें। मन के व्यवहार सही रास्ते पर होंगे, तो व्यक्ति को महावीर और गांधी बना देंगे और गलत रास्ते पर चलेंगे, तो शैतान को जन्म दे देंगे। इंसान तब गिरता चला जाएगा। मन अहिंसावादी होगा, तो जीवन को सुधार लेंगे और मन आतंकवादी होगा तो जीवन को सही दिशा नहीं दे पाएगा। मन तब मनुष्य को हिंसा के रास्ते पर ले जाएगा । हम मन को सही दिशा दें, मत - मज़हब को किनारे रखें, मन को सुधारें। मन ही सबसे बड़ा मज़हब है। मन अगर अंतर्मुखी है, तो मन ही मंदिर है; मन अगर बहिर्मुखी है तो मन ही बंदर है । मन के अपने पागलपन हैं । मन नियंत्रण में न रहे तो तुरन्त गलत रास्तों की तरफ़ ताकने लगता है और उसे न रोका जाए, तो उन पर चल पड़ता है। सबके मन के अलग-अलग रोग हैं। चिंता, लोभ, अवसाद ये मन ही पैदा करते हैं । मानसिक विकारों से गलत काम होते हैं और गलत कामों से चिंताएँ बढ़ती हैं। चिंताओं से शरीर का क्षरण होता है, मनुष्य का आत्म-विश्वास कमज़ोर होता है, संकल्प - शक्ति कमज़ोर होती है । अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए मन पर नियंत्रण करें । I मन की दुरावस्थाओं में एक है लोभ । इससे दूसरी बीमारियों का रास्ता खुल जाता है। लोभ को पाप का बाप कहा गया है। पाप से बचने का सीधा-सा रास्ता है, जीवन में लोभ को प्रवेश ही न करने दो। लोभ की तरह ही गुस्सा भी दूसरों के Jain Education International 218 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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