Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 211
________________ 1.20 मन के सूक्ष्म रहस्य इसान का शरीर किसी रथ के समान होता है और उसमें रहने वाली आत्मा किसी सारथी के समान। यह एक ऐसा रथ है जिसका सारथी हमारी बुद्धि हुआ करती है। हमारा मन लगाम की तरह होता है और हमारी इंद्रियाँ घोड़ों की तरह। ज्ञानी और प्रज्ञाशील पुरुष अपने विवेक और संयम द्वारा जीवन रूपी रथ को विधिवत् रूप से संचालित कर लेता है। इसके लिए ज़रूरी यह है कि हमारी बुद्धि रूपी सारथी मज़बूत हो, परिपक्व हो। किसी भी रथ का सारथी मज़बूत नहीं है, तो उस रथ का संचालन सही तरीके से नहीं हो पाएगा। केवल रथ पर सवारी करने वाला अर्जुन ही परिपक्व हो, इससे काम नहीं चलेगा, बल्कि उससे भी कहीं ज़्यादा आवश्यकता इस बात की है कि रथ का संचालन करने वाला सारथी कृष्ण ज़्यादा मज़बूत और परिपक्व हो। सारथी कमज़ोर होगा, तो रथ के सवार का जीवन ख़तरे में समझो। मज़बूत सारथी ही यह कह सकते हैं कि हे पार्थ, तू अपने हृदय की तुच्छ दुर्बलताओं को त्याग दे । नपुंसकता तुझे शोभा नहीं देती । तू घबरा मत, मैं तेरे साथ हूँ। हम जीएँगे तो साथ और मरेंगे तो साथ। बुद्धि और आत्मा, बुद्धि और चेतना समन्वय स्थापित कर ले, तो जीवन के संग्राम में व्यक्ति की विजय निश्चित है। आज हम जिस मुद्दे पर चर्चा करेंगे, वह बुद्धि से दो क़दम आगे है। सारथी मज़बूत हो और रथ में दौड़ने वाले घोड़ों की लगाम कमज़ोर हो, घोड़े कमज़ोर हों तो अच्छे-से-अच्छा सारथी भी क्या कर लेगा? जीवन के सुव्यवस्थित संचालन के लिए शरीर रूपी रथ का मज़बूत होना भी रूरी है। बुद्धि का स्वस्थ होना रूरी है तो रथ की लगाम और घोड़ों का मज़बूत भी होना |रूरी है। न तो अकेला शरीर ही जीवन है, और न ही उसमें निवास करने वाली आत्मा। जीवन विभिन्न घटकों का समन्वय है, संतुलन है । हरेक का महत्त्व समान है और उसकी उपयोगिता भी है। प्रभु कोई भी चीज निरर्थक नहीं देते। जो कुछ भी है, जैसा भी है, उसमें 210 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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