Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 208
________________ जाना शुरू किया था। मैं जानना चाहता था कि मेरा सम्मान मेरे ज्ञान की वजह से है या सदाचार की वजह से। अब मुझे अहसास हो गया कि ज्ञान अपने स्थान पर है, लेकिन सदाचार के बिना सब बेकार है। सदाचार ही वह ताक़त है जो ज्ञान से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। किसी भी व्यक्ति का सम्मान सच्चरित्रता की दौलत से ही होता है। यमराज कहते हैं, 'कोई व्यक्ति यदि दुराचार से मुक्त नहीं हुआ है तो वह आत्म-तत्त्व की प्राप्ति का अधिकारी नहीं है।' किसी को आत्म-तत्त्व का प्रकाश चाहिए तो ईमान रखना होगा, सच्चरित्रता रखनी होगी, बुराइयों को तिलांजलि देनी होगी। चोरी या व्यभिचार से परे रहना होगा। अन्य बुराइयों की तरह क्रोध और घमण्ड भी बुराई ही है। इनसे भी मुक्त होना होगा। अपने भाई के साथ सद्व्यवहार नहीं कर रहे हो, तो यह भी बुराई ही है। तन-मन को सजाना भी एक बुराई हो सकती है। इन बुराइयों को छोड़ देंगे, तो आत्म-तत्त्व की प्राप्ति में आसानी हो जाएगी। आत्म-तत्त्व प्राप्ति के लिए पहली शर्त यही है कि हम जीवन में पलने वाली बुराइयों से मुक्त हो जाएँ। बुराइयों को छोड़कर लिया जाने वाला संन्यास ही असली संन्यास है। गुस्सा नहीं करूँगा, यह संकल्प करना भी संन्यास लेने जैसा ही है। बुराई छोड़नी है, तो जीवन में व्रत धारण करो। महावीर, गांधी ने पंच शील व्रत धारण किए। ये पंच शील व्रत हैं - अहिंसा, अचौर्य, सत्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य । हम भी ये पाँच व्रत धारण करें। हम इन्हें धारण करते ही बुराइयों से निवृत्त होते चले जाएँगे। बुराइयों से निवृत्ति ही सच्चा संन्यास कहलाएगा। एक साथ न छोड़ सकें, तो एक-एक कर बुराइयों से खुद को अलग करें। पहले सप्ताह एक बुराई को छोड़ो, दूसरे सप्ताह दूसरी बुराई को। इस तरह एक-एक कर सारी बुराइयों से निवृत्त हो जाएँ। जीवन का पल-पल मूल्यांकन करते चले जाएँ। दिन, महीने, साल लग जाएँ तो कोई बात नहीं, लेकिन एक बार शुरुआत कर ली, तो समझो बुराइयों पर विजय प्राप्ति की शुरुआत हो गई। जिस दिन कोई सार्थक काम हो जाए, तो समझना आज का दिन सार्थक रहा। जिस दिन ऐसा न हो, वह दिन निरर्थक चला गया। इस तरह मूल्यांकन करते रहेंगे, तो असली जीवन का पता चल जाएगा। मनुष्य की असली उम्र वही होती है, जो सार्थक कार्यों में गुजरती है। जिस दिन किसी ग़रीब की मदद कर पाए तो समझो, दिन सार्थक हो गया। तो पहला कदम सदाचार की तरफ बढ़ाओ। यमराज नचिकेता को समझा रहे हैं कि दुराचारी के अलावा अशांत रहने वाला भी आत्म-तत्त्व की प्राप्ति नहीं कर सकता। जो व्यक्ति तनावग्रस्त है, वह आत्म-तत्त्व को क्या समझेगा? वह तो उसका मूल्य ही नहीं समझ पाएगा। जैसे किसी व्यक्ति को फैक्ट्री में घाटा लग गया। वह परेशान, अशांत बैठा है। इतने में भगवान वहाँ प्रकट हो गए, उन्होंने उससे पूछा, 'बोलो क्या 207 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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