Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 157
________________ चुकी थी। वह ज्यों ही कबूतर की गर्दन मरोड़ने लगा, उसे अहसास हुआ कि यहाँ तो चाँद-सितारे देख रहे हैं। वह उस पहाड़ की सुरंग में चला गया। अब कबूतर की मौत आने ही वाली थी कि शिष्य को लगा कि यहाँ तो वह खुद देख रहा है। आखिर वह लौट आया। उसने गुरु से कहा, मुझे तो ऐसी कोई जगह नहीं मिली, जहाँ कोई देखता न हो। सर्व व्यापक सत्ता हर जगह देख रही होती है। गुरु ने उसकी पीठ थपथपाई, वत्स! मैं जान गया कि वह भविष्य के महापुरुष तुम ही हो, मुझे तुम्हारा गुरु होने का सौभाग्य मिला, यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। दुनिया में कुछ भी गुप्त नहीं है। पर्दा डालने से क्या होगा? दूसरों की आँखें नहीं देख रही तो क्या हुआ, खुद तुम्हारी आँखें तो देख ही रही हैं। आदमी कपड़े खुद के लिए थोड़े ही पहनता है। दूसरे उसे नंगा देखकर शर्म से नज़रें न झुकाएँ, इसलिए पहनता है। आदमी नहाते समय अपने बाथरूम में नग्न होता है, वह अपने आपको काँच में देखना पसंद करता है। धनाढ्य लोगों के बाथरूम भी कमरों जैसे होते हैं। उनमें बड़ेबड़े काँच लगे होते हैं। उनमें खुद को नग्न-नहाते देख सकते हैं। खुद को शर्म नहीं आती, लेकिन जैसे ही बाथरूम से बाहर आते हैं, तो कपड़ों की ज़रूरत पड़ती है। इससे यही सार समझने को मिलता है कि आदमी कपड़े दूसरों के लिए पहनता है। विदेशों में तो लोग रात्रि में निर्वस्त्र होकर सोते हैं। वहाँ तो निर्वस्त्र होने की प्रतियोगिता तक होने लगी है। समाचार-पत्रों में कई बार ऐसे चित्र आते हैं कि हज़ारोंहज़ार जोड़े निर्वस्त्र होकर लेटे हैं। समुद्र तटों पर भी अनेक लोग निर्वस्त्र लेटे, धूप सेकते नज़र आते हैं। इस तरह दुनिया में छिपाने योग्य कुछ भी नहीं है। बस, खुद को अच्छा दिखाने का प्रयास करो, ताकि लोग तुम्हें देखकर आँखें बन्द न करें। अपने आपको देखते रहें। इससे अहसास होता रहेगा कि हमारे भीतर कितनी खोट है। उस खोट को मिटाने के लिए हम निरन्तर प्रयत्नशील रहेंगे। यमराज कहते हैं - 'यह जो कठिनता से दिखाई देने वाला तत्त्व है, वास्तव में चिंतन करने योग्य है कि आखिर यह क्या है ? हमारे भीतर यह तत्त्व होने से हम जीवित रहते हैं और यह तत्त्व निकलते ही शव हो जाते हैं। आखिर यह तत्त्व कहाँ से आता है, कहाँ जाता है ?' जीवन में संन्यास की शुरुआत करने के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। मनुष्य अपनी आँखें खुली रखे, तो उसे अपने आस-पास इतने निमित्त दिखाई दे जाएँगे कि उसके भीतर पल-पल संन्यास के भाव पैदा होने लगेंगे। दादाजी गुज़र गए, पोता आ गया। माँ सुन्दर है, दादी के चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ी हैं, ओह, तो ये होता है बुढ़ापा। हर खूबसूरत मनुष्य को एक दिन ऐसा हो जाना है। तब जीवन क्या है, यह समझ में आने 156 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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