________________
लगेगा कि इतना-सा जीवन है। यह शरीर मिट्टी है जिसे मिट्टी में मिल जाना है। और लोगों की तरह एक दिन मैं भी मर जाऊँगा । पिताजी ने खूब कमाया, सब यहीं छोड़ गए। मैं भी धन-जायदाद यहीं छोड़कर जाने वाला हूँ, तो इससे मोह कैसा ? व्यर्थ ही क्यों प्रपंच किया जाए। सहज रूप से जीवन जीया जाए ।
मनुष्य अपने जीवन में, अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं को इस तरह नहीं देखेगा, उन पर चिंतन-मनन नहीं करेगा तो दुनिया का कोई इंसान कभी बदल ही नहीं सकेगा। किसी में इतनी ताक़त नहीं है कि ऐसे आदमी को कोई जगा सके। आदमी अपनी वजह से ही सुधरता है। आदमी गिरता है अपनी ही वजह से और सुधरता है खुद अपनी इच्छा-शक्ति से । विश्वामित्र को किसी मेनका ने नहीं गिराया। उनके भीतर खोट थी, सो मेनका निमित्त बन गई ।
सबके भीतर खोट है । स्वीकार करेंगे, तो अपनी खोट को सुधार लेंगे। भीतर खोट है, फिर भी खुद को अच्छा बताते हो, तो यह अपने साथ ही अन्याय कर रहे हो । फोटो खिंचवाने जाते हैं, फोटोग्राफर से पूछते हैं, फोटो कैसी आएगी, अच्छी आनी चाहिए, रंगीन । यह तो ज्ञानी की बात नहीं है । बाहर की फोटोग्राफी भले ही रंगीन करवा लो, जिस दिन भीतर से फोटो खींची जाएगी, उस दिन सारे रंग उड़ जाएँगे । इन्द्रधनुष कितनी देर आकाश में रहता है, पल में आकार लेता है और पल में गायब हो जाता है । इसी तरह हम सबके भीतर कालापन है। बस, हम उसे ईमानदारी से स्वीकार नहीं करते और इसीलिए उस कालेपन से अलग नहीं हो पाते।
आदमी जैसा हो, उसे वैसा ही दिखाना चाहिए । भीतर जैसे हो, बाहर वैसे ही रहो। इसमें संकोच कैसा ? इसलिए यमराज बता रहे हैं कि आत्म-तत्त्व कहाँ निवास करता है ? आत्म तत्त्व के बारे में यमराज से ज्यादा कौन जानता है ? इसलिए यमराज की ओर से दी जाने वाली जानकारी महत्त्वपूर्ण है। इस आत्म-तत्त्व को जानने में शायद देवेन्द्र को भी पसीना आ सकता है, लेकिन यमराज तो जानते ही हैं कि आत्म-तत्त्व कहाँ निवास करता है ?
आत्म-तत्त्व कहाँ से आता है, शरीर में निवास करने के बाद कब यहाँ से चला जाता है और कैसे चला जाता है, इस बारे में किसी को पता नहीं चलता । मृत्युदेव आते हैं, गेम खेलते हैं और आत्मा को लेकर चले जाते हैं। ऐसा वे कब और कैसे करते हैं, कोई नहीं समझ पाता। मृत्यु से एक क्षण पहले तक इस बारे में या तो स्वयं मृत्युदेव जानते हैं, या फिर व्यक्ति खुद ।
I
यमराज नचिकेता के सामने यह रहस्य उद्घाटित कर रहे हैं । वे बता रहे हैं कि यह वह गूढ़ तत्त्व है जो मनुष्य के हृदय में निवास करता है । आत्मा के साथ जीना है, तो
1
157
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org