Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 186
________________ आभामंडल-सा बन जाएगा, रक्षा-कवच बन जाएगा। भीतर-ही-भीतर हमारी चेतना जागृत हो जाएगी। लोग मंदिर जाते हैं, वहाँ घंटे बजाते हैं। क्या आपने कभी इस पर विचार किया है कि ऐसा क्यों किया जाता है ? ऐसा तो है नहीं कि भगवान सोए हुए हैं और आप उन्हें जगाने जा रहे हैं। भगवान को जगाने के लिए घंटे बजाने की ज़रूरत नहीं है। वे तो पहले से जगे हुए हैं। जगना तो आपको है। मंदिर में घंटे-घड़ियाल इसलिए बजाए जाते हैं ताकि उनकी ध्वनि की तरंगें आपके चारों तरफ एक ऐसा अद्भुत वातावरण बना दें कि आपको लगे, आप किसी मंदिर में नहीं, प्रभु के सामने ही खड़े हैं। आपकी अंतश्चेतना जगने लगी है। लेकिन यहाँ तो लकीर पीटी जा रही है। मंदिर में आरती हो रही है, तो लोग बस देखादेखी घंटे-घड़ियाल बजाए चले जाते हैं। उस आवाज के साथ लय में लय नहीं मिलाते। आराधना का यह भी एक तरीका है कि किसी काम में आपकी लय बन जाए। उस समय और कुछ भी दिखाई न दे। ज्ञानी कहते हैं, मंदिर जाओ तो मौन हो जाओ। दुनिया में ऐसे मंदिर तो बहुत हैं जहाँ मूर्तियों की भरमार है लेकिन ऐसे मंदिर कम ही हैं जहाँ केवल सन्नाटा मिल सके, शांति मिल सके; जहाँ जाकर आप शांत भाव से प्रार्थना कर सकें, उस परमपिता परमात्मा से लौ लगा सकें। जहाँ शांति-भाव से प्रार्थना की जा सके, वही स्थान मंदिर है। मैं ऐसे मंदिरों को पसंद करता हूँ जिसमें आवाज न की जाती हो। लोग शांति और मौनपूर्वक भीतर जाएँ। अपने मन की प्रार्थना, भावना के पुष्प समर्पित करें। कुछ देर वहाँ बैठकर वहाँ की शांति का सुकून पाएँ और वापस लौट जाएँ। ___ ओम् के माध्यम से साधना करें, तो पहला चरण है, ओम् का उच्चारण । मंदिरों के स्तम्भ इसीलिए उपयोगी माने गए हैं। राजस्थान का राणकपुर तीर्थ बड़ा ही अद्भुत तीर्थ है। इसका निर्माण 1440 स्तम्भों से कराया गया है। इसमें एक खास गुम्बद भी है, जिस पर शंख का आकार उत्कीर्ण है । शंख के इस आकार से निकलती एक तरंग दिखाई गई है जो ऊपर तक जाती है । इस गुम्बद के नीचे शंख को बजाया जाता है, तो एक खास तरह की गूंज होती है । यह ध्वनि वापस लौटती है और नीचे खड़े लोगों पर अमृत की तरह बरस जाती है। __ इसलिए ओंकार के उच्चारण की बात कही गई। केवल माला फेरने बैठोगे तो संभव है, मन भटके; लेकिन साथ में उच्चारण भी करने लगोगे, तो उस स्थान पर एक अलग ही वातावरण का निर्माण हो जाएगा। ओम् के उच्चारण से होने वाली आवृत्तियाँ लौट कर हम पर भी कृपा बरसाएँगी। मंत्रोच्चारण के साथ यदि संगीत को भी जोड़ दिया जाए, तो मंत्र-साधना और सरस बन जाएगी। संगीत की लय के साथ ही मन एकाग्र होने लगेगा, हमें उसमें आनन्द आने लगेगा। मंत्र का उच्चारण करें, फिर श्वासोश्वास के 185 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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