Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 171
________________ चीज के प्रति आसक्ति नहीं रहेगी। नहाने के लिए तब लक्स या डव के बारे में सोचना नहीं पड़ेगा। स्वच्छता ही चाहिए तो किसी भी साबुन से काम चल जाएगा। किसी साबुन विशेष के प्रति आसक्ति नहीं होगी। महिलाएँ नहाने में बहुत समय लगा देती हैं । शरीर को साफ करना है, तो इसमें इतना समय क्यों खर्च करें। नहाने के बाद साड़ी के चयन में समय लगेगा, यह रंग पहनूं या वह रंग। नहीं, इस रंग की साड़ी तो कल ही पहनी थी, आज दूसरा रंग होना चाहिए। रंग के प्रति इतनी आसक्ति? विवेकपूर्वक विचार करेंगे तो रंगों के प्रति मोह समाप्त हो जाएगा। परिग्रह-बुद्धि और एषणाओं पर नियंत्रण रखने से ही हम अनासक्ति की ओर कदम बढ़ा पाएँगे। किसी भी चीज का परिणाम देखने का प्रयास करोगे तो उस चीज के प्रति आसक्ति अपने आप कम होती चली जाएगी। हमें चिंतन-मनन करना होगा। आत्मा के बारे में भी चिंतन-मनन करना होगा। यमराज कहते हैं, 'आत्मा के बारे में पहले ध्यानपूर्वक श्रवण करो, फिर ग्रहण करो, धैर्यपूर्वक उसे जानने का प्रयास करो। जब जान जाओ तो उसे उपलब्ध कर लो। किसी भी मंजिल को पाना है, तो धैर्यपूर्वक सुनना ही होगा, ग्रहण करना होगा। तभी उसे पा सकेंगे। सुनकर, ग्रहण कर अपने भीतर आत्मसात् करना होगा।' कठोपनिषद् के माध्यम से हमने आत्म-ज्ञान की प्राप्ति के पाँच चरण बना लिए हैं। इन चरणों से ही रोशनी का नया रास्ता खुलेगा। हम इसकी रोशनी में जिएँगे। चाँद का प्रकाश, सूर्य का प्रकाश, सितारों का प्रकाश, दीपक का प्रकाश, हर प्रकाश का अपना आनन्द है। सच्चा प्रकाश तब होगा, जब अंतरात्मा प्रकाशित होगी। तब अंधकार नहीं रहेगा। भीतर की रोशनी फूट पड़ेगी। बाहर की दीपावलियाँ सजाकर क्या कर लोगे, यदि भीतर के दीप बुझे हुए हैं। पहले भीतर से स्वयं को रोशन करो। फिर तो बाहर रोशनी अपने आप हो जाएगी। कुल मिलाकर बात का सार इतना ही हैं कि सत्य का श्रवण करो, ग्रहण करो, चिंतन-मनन करो, उसमें लयलीन बनो। जो प्राप्त हुआ है, उसके आनन्द में थिरक उठो। जब तक आत्म-सत्य न मिले, तब तक महावीर की तरह मौन को महत्त्व दो। जब मिल जाए, तो मीरा की तरह झूम उठो। पग धुंघरू बांध मीरा नाची रे। मीरा नाच उठी थी, तुम्हें मिल जाए, तो तुम भी मीरा बन जाना। नचिकेता भी आत्मसत्य का ज्ञान पाकर नाच उठा होगा। अस्तित्व ने उस पर ढेर सारे पुरस्कार लुटा दिए होंगे। आओ, हम भी अपना आनन्द लें। 170 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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