________________
अतिथि का सत्कार करना प्रभु की प्रार्थना करने जैसा ही है। घर आए अतिथि का विनम्रतापूर्वक सत्कार करना चाहिए, फिर चाहे वह कोई संन्यासी हो या सामान्य आदमी।द्वार आए अतिथि का स्वागत-सत्कार होना ही चाहिए। साधु-साध्वी में प्रायः साध्वी को छोटा पद माना गया है, लेकिन हमारा मानना है कि साध्वी का भी उसी तरह स्वागत-सम्मान होना चाहिए जैसा हम साधु का करते हैं । हम साध्वी के आगमन पर चार कदम आगे चलकर उनका स्वागत करते हैं और जब वे हमारे यहाँ से जाती हैं, तो उन्हें भी द्वार तक पहुँचाने जाते हैं । यह अदब है। अदब तो चाहे बड़े का करो या छोटे का, अदब तो अदब ही रहेगा।अदब लेने की नहीं, देने की चीज है। अदब जितना दोगे, अदब का 'अदब' उतना ही बढ़ेगा। अतिथि का अदब तो हमारा पहला धर्म है। अतिथि-सत्कार से घर की दरिद्रता दूर होती है। हमारे यहां मान्यता है कि बहन-बेटी को दिया गया हमेशा फलदायी होता है। बहन-बेटी हमारे घर आकर भोजन करती है, तो नवग्रह-दोष दूर होते हैं। उन्हें हमेशा देते रहना चाहिए। जिसके घर में बाई-बेटी राजी रहती है, उस घर पर लक्ष्मी और विष्णु राजी रहते हैं।
धर्म आखिर क्या है ? केवल पूजा-पाठ कर लेना ही धर्म है या कुछ और भी है ? अतिथि का सत्कार करना हमारा पहला धर्म है। घर आए अतिथि के समक्ष विनम्रता से पेश हों। जल से उसका अभिषेक करें। बैठने को आसन दें। उनसे कहें, 'आइए, विराजिए। आपका स्वागत है। आपके आने से हमारा घर धन्य हो गया।' इस तरह के शब्द ही आतिथ्य-सत्कार का एक अंग बन जाएँ। कोई अतिथि आया, हम मुँह सुजाए बैठे रहे, अभिवादन तक न किया। अतिथि सोचेगा, घर के भीतर जाकर क्या करूँ। इंसान हो तो मिलूँ, भीतर तो सब मूर्तियाँ बैठी हैं। मूर्तियों के तो दर्शन किए जा सकते हैं। ऐसे में तो अतिथि दरवाजे से ही लौट जाएगा। याद रखना, तब अतिथि का लौटना भगवान का लौटना होगा।
___ कहते हैं, नचिकेता यमराज के द्वार पर पहुँचे। वहाँ वे अतिथि थे। यमराज का दायित्व था कि वे उनका सम्मान करते। उनसे कहते, हे ब्राह्मण देवता, मैं आपका अभिवादन करता हूँ। यमराज ने नचिकेता से ऐसा ही कहा, उनका स्वागत किया। उनके पाद-प्रक्षालन किए। यूँ तो लोग यमराज से डरते हैं, लेकिन यहाँ बात दूसरी है। नचिकेता यहाँ अतिथि के रूप में आए थे। तीन दिन से भूखे थे। कहीं ऐसा न हो कि नचिकेता रुष्ट होकर श्राप दे दें। अतिथि का कुपित होना ठीक नहीं होता। एक तो अतिथि, ऊपर से ब्राह्मण, यमराज भला पीछे कैसे रह सकते थे। सत्कार से प्रसन्न होकर अतिथि मेजबान को उसके कल्याण का ही तो आशीर्वाद देगा। इसलिए यमराज ने विनम्रतापूर्वक कहा, 'हे नचिकेता ! मैं आपका अभिवादन करता हूँ।'
69
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org