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जो लोग घी की आहुति देते हैं, वे इसे समझने की कोशिश करें कि असली यज्ञ कहाँ होता है? क्या पृथ्वी पर किया जाने वाला ही यज्ञ है ? असली यज्ञ क्या घी और समिधा की आहुति से हो जाएगा? यमराज कहते हैं, असली यज्ञ के लिए इंसान को अपनी बुद्धि से जुड़ना होगा। बुद्धि रूपी गुफा में स्थित अग्नि को समझना होगा। अर्थात् वास्तव में बुद्धि को उपयोग में लें। शास्त्रों का अधिकतम अध्ययन करें। खूब ज्ञानार्जन करें। तब ही कोई अग्नि-तत्त्व का सच्चा उपासक बन सकता है। अग्नि-तत्त्व को अपने में आत्मसात् कर सकता है। ___ अग्निदेव कहाँ रहते हैं, मनुष्य की बुद्धि में । दुनिया में किसी भी कच्ची चीज को पकाने के लिए अग्नि का सहारा लेना पड़ता है। मनुष्य को अपने जीवन को पकाने के लिए इसी तत्त्व का सहारा लेना होगा। अग्नि रूपी बुद्धि एक साधन है। इंसान पच्चीस वर्ष तक बुद्धि को तराशता है, फिर विवाह हो जाता है और वह सांसारिक क्रियाकलापों में व्यस्त हो जाता है। अपनी बुद्धि का उपयोग घर चलाने, व्यापार करने आदि में करने लगता है। औरतें घर के सुव्यवस्थित संचालन में जुट जाती हैं। उनकी बुद्धि वहाँ लगने लगती हैं। कुछ ही लोग होते हैं जो सांसारिक जीवन के बावजूद अपनी बुद्धि के विकास के लिए भी तत्पर हो जाते हैं।
इंसान जब तक जीए, उसे विद्यार्थी बन कर रहना चाहिए। इससे ज्ञान प्राप्ति के रास्ते सदैव खुले रहते हैं। भले ही कोई गुरु कितना ही बड़ा क्यों न बन जाए, दार्शनिक क्यों न बन जाए, उसे अपने आप को विद्यार्थी बनाकर रखना चाहिए ताकि ज्ञान-प्राप्ति की धारा बहती रहे। कोई व्यक्ति घर बनाता है, केवल उसमें प्रवेश के लिए ही रास्ते नहीं बनाता, वह कई दरवाजे बनाता है, खिड़कियाँ बनाता है ताकि घर में हमारे साथ शुद्ध हवा भी प्रवेश कर सके। भीतर जाने वाला बाहर भी आ सके।
प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान-प्राप्ति के रास्ते पर चलते रहना चाहिए। इंसान को ज्ञान बढ़ाने के लिए हमेशा तीन फार्मूले ध्यान में रखने चाहिए। पहला, पढ़ो। दूसरा, जो पढ़ा, उसके बारे में दूसरों से संवाद करते रहें। जितनी संभव हो, बातचीत करें। इससे हमारे ज्ञान को और विस्तार मिलेगा। संवाद से ज्ञान बढ़ता है। संवाद यदि टूट जाए, तो संबंध टूट जाता है । संवाद जारी रहेगा, तो संबंध जारी रहेगा।
किसी से अनबन हो जाए, तब भी बातचीत बंद न करो। बातचीत बंद करने से धीरे-धीरे संबंध भी बंद हो जा जाया करते हैं। तीसरा फार्मला यह है कि जो पढालिखा, उसका पुनरावर्तन करते रहो। जो एम.ए. कर चुका है, वह आठवीं की पुस्तक उठाकर फिर से नहीं देखेगा, तो पहले का ज्ञान भूल जाएगा। जो भी आपने पढ़ा है, उसे मौका निकालकर पढ़ते रहें । अर्जित ज्ञान छूटे नहीं, संवाद टूटे नहीं, ज्ञान बिखर न जाए,
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