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चाहिए। कीर्ति-दान अच्छी बात है लेकिन ज्ञान-दान, औषधि-दान, मरते प्राणी को जीवन-दान सबसे बड़ा धर्म है।
__ अब लोगों की समझ में आने लगा है कि दुनिया को दया और अहिंसा के धरातल पर ही जीवित रखा जा सकता है। लोग मांसाहार त्याग कर शाकाहार की तरफ़ लौट रहे हैं। हज़ारों-हज़ार लोगों का हृदय-परिवर्तन हुआ है। उनमें श्रद्धा के भाव जगे हैं। हम शाकाहार अपनाएँ, इंसानियत का धर्म निभाएँ। किसी प्राणी को बचाएँगे, तो उसकी दुआ ज़रूर लगेगी।
___ कहते हैं, एक आदमी ने एक हरिण के बच्चे को पकड़ लिया। उसकी माँ उसे बचाने के लिए उस व्यक्ति के पीछे दौड़ने लगी। उसकी आँखों में आँसू थे। उस व्यक्ति को जैसे कोई भीतर से कहता प्रतीत होने लगा कि इस हरिण को छोड़ दे, उसकी माँ तुझे दुआ देगी और उससे तेरा भला होगा। तू रहम करेगा, तो ख़ुदा भी तुझ पर रहम करेगा। वह हरिण के बच्चे को छोड़ देता है, उसकी माँ उसे भीगी आँखों से दुआएँ देती लौट जाती है। उस रात वह आदमी सपना देखता है और सपने में उसे दिखाई देता है कि वही हरिण की माँ उसे दुआएँ दे रही है कि एक-न-एक दिन तुम्हें इस दया का फल ज़रूर मिलेगा। आगे जाकर यही व्यक्ति ग़ज़नी का बादशाह हुआ।
यह दनिया दया, प्रेम और करुणा के दम पर ही जीवित रह पाएगी। दया और धर्म के पारस्परिक सहयोग से ही लोगों का भला होगा। उद्दालक यज्ञ करने के बाद दान-दक्षिणा के रूप में अशक्त और बीमार गायें देने लगे, तो नचिकेता का परेशान होना उचित ही था। उसके भीतर करुणा के भाव उमड़ पड़े। वह परेशान हो उठा। उसे लगा कि जैसे पुत्र ग़लती करे, तो पिता का दायित्व होता है कि वह उसे सावधान करे। यहाँ तो पिता गलती कर रहे हैं, तो क्या उसका कुछ दायित्व नहीं होता? हो सकता है कि तब नचिकेता के द्वारा जो कुछ कहा जाता है, वह बड़ों की नज़र में छोटे मुँह बड़ी बात कहलाएगी, लेकिन पिता को ठोकर खाने से बचाना, गड्ढे में गिरने से बचाना उसे अपना धर्म लगा; इसलिए उसके धर्म ने उसे उत्प्रेरित कर डाला कि वह कुछ कहे । वह सचमुच भीतर से बड़ा परेशान हो उठा। आखिर नचिकेता की परेशानी क्या रंग लाई, उसने ऐसा क्या किया जिससे उसके भीतर की करुणा को विस्तार मिला।
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