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आप छोटे हैं, चॉकलेट या कुछ खाने की इच्छा हो रही है, अवश्य खाएँ, लेकिन अपने दादाजी को भी पूछ लें। हो सकता है वे चॉकलेट खाएँ ही नहीं, लेकिन आपका पूछना उनके लिए सुखद होगा। खाना महत्त्वपूर्ण नहीं है, आपका पूछना महत्वपूर्ण हो जाएगा। इसलिए घर के सदस्यों का और घर आए अतिथियों का सत्कार होना चाहिए। जिस घर में अतिथियों का सत्कार होता है, उस घर की देहरी पर मत्था टेकना किसी गुरुद्वारे में मत्था टेक आने के समान होगा। जिस घर में गए हुए अतिथि का सत्कार हो चुका हो और आने वाले अतिथि का इंतज़ार हो रहा हो, उस घर में तो स्वयं देवता भी आने को आतुर रहते हैं।
यमी ने मृत्युदेव से कहा, 'हे सूर्य-पुत्र, आपके द्वार पर ब्राह्मण के रूप में अतिथि आए हैं।' ब्राह्मण अग्नि-देवता के समान होता है। ब्राह्मण पूजा करता है, आहुति देता है। वह अग्नि-तत्त्व की साधना करता है; इसीलिए वह अपने आप में अग्नि होता है। जो केवल जन्म से ब्राह्मण हैं, उनकी बात छोड़ दीजिए। कर्म से ब्राह्मण होना ही ब्राह्मणत्व की पहचान है।
यह सच है कि मैंने वैश्य-कुल में जन्म लिया है, लेकिन मैं कर्म से ब्राह्मण हूँ। मैं चाहता हूँ आप भी ब्राह्मण बनें। मैं संसार में रहकर भी कमल की तरह निर्मल और निस्पृह रहने का आनन्द लेता हूँ, इसका पूरा बोध भी रखता हूँ। मेरी समझ से ब्राह्मण होना जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य है। समस्त मानव जाति में किसी भी व्यक्ति का ब्राह्मण हो जाना, उसकी जन्म-जन्म की साधना का फल होता है। यही वजह है कि प्राचीनकाल में बड़े-बड़े राजा-महाराजा, सेठ-साहूकार ब्राह्मणों का सम्मान करते थे। वे मानते थे कि ब्राह्मण को दो पैसे का दान दिया और उसने स्वीकार कर लिया, तो समझो धन्य हो गए। उस ज़माने में ब्राह्मण आसानी से दान स्वीकार नहीं करते थे। ___ राजा बली ने महान यज्ञ किया। उन्होंने शुक्राचार्य को यज्ञाचार्य बनाया। उस यज्ञ की विशेषता यह थी कि जो भी उसे पूरा कर लेगा, उसे देवता भी पराजित नहीं कर पाएँगे। दानवों के राजा बली ने इस तरह का यज्ञ करने की ठान ली। यज्ञ पूरा होता देख देवता घबराए । यज्ञ पूर्ण हो गया, तो बली अपराजेय हो जाएगा। अब क्या किया जाए। सारे देवता प्रभु के पास पहुँचे। भगवान विष्णु के दरबार में उन्होंने अपनी पीड़ा बताई। आप ही कोई राह सुझाएँ, प्रभु।
भगवान ने तब वामन का अवतार लिया। एक छोटा, नाटा-सा बालक बनकर वे बली की यज्ञशाला के बाहर पहुँचे। भीतर यज्ञ चल रहा था। बली आहुतियाँ दे रहा था। शक्राचार्य यज्ञ करवा रहे थे। उन्हें पहले ही अंदेशा था कि विष्णु कोई-न-कोई गड़बड़ कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने यज्ञशाला के द्वार पर पहरा लगवा रखा था ताकि कोई भीतर प्रवेश न कर पाए । वामन को बाहर ही रोक दिया गया। बली को पता चला कि
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