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बाँटी है। किसी को कुछ देना ज़रूरी नहीं है, पर अगर दो तो हमेशा अच्छी चीज़ दो। अगला भी याद रखेगा किसी सेठ ने कुछ दिया।
ईश्वर से प्रार्थना करो कि वह हमारे हाथ को हमेशा देने की मुद्रा में रखे। हम भले ही कम कमाएँ या ज्यादा, लेकिन हमारी देने की प्रवृत्ति होनी ही चाहिए। दस कमाते हो तो चवन्नी दो, सौ कमाते हो तो दो रुपए दो, पर दो ज़रूर। गुरु विद्या देते हैं, इसलिए उनके प्रति श्रद्धा उमड़ती है। देवता शब्द बना ही देने के कारण है। जो देता है, वह देवता। जिसके पास जो है, वह बाँटे। धनवान धन बांटे
और कोई ज्ञानी है तो अपना ज्ञान बाँटे । नहीं बाँटोगे, तो धर्म पीछे छूट जाएगा और ज्ञान है तो ज्ञान उस व्यक्ति के साथ चला जाएगा। इसलिए ज्ञान है, तो ज्ञान का विस्तार करो। ज्ञान की ऐसी ज्योति जलाएँ, जो साल-दर-साल लोगों को रोशनी दिखाए और कुछ करना है तो नेत्रदान करें, रक्तदान करें। जीते जी रक्तदान, मरणोपरांत नेत्रदान।
एक और दान है औषधि-दान। बहुत से लोग सिर्फ इसलिए इलाज नहीं करवा पाते क्योंकि उनके पास महँगी दवाएँ खरीदने के लिए पैसे नहीं होते। ज़रा सोचिए, यदि कोई सामान्य व्यक्ति मात्र चार-पाँच हजार रुपए महीना कमा रहा है और उसके माता-पिता या दादा-दादी को हार्ट की बीमारी हो गई, तो वह उन्हें दवा कैसे दिला पाएगा? जितना वह कमाता है, उतना तो दाल-रोटी में ही खर्च हो जाता है। जरा सोचो, अगर कोई व्यक्ति आपके यहाँ काम करता है, आप उसे चौकीदारी के तीन हजार रुपए महीने भी देते होंगे, पर इससे तो वह अपनी दाल-रोटी की व्यवस्था बैठा पाता है। उसके भी आख़िर बच्चे हैं, उन बच्चों की भी कुछ इच्छाएँ होती हैं। उनकी भी तमन्ना होती है कि कभी कुल्फी खाएँ, हैप्पी बर्थ डे पर केक न सही, खीर का स्वाद तो ज़रूर लें। क्या हम लोग उनकी इन इच्छाओं के बारे में कभी सोचते भी हैं ? आप दुनिया को दान मत दो, लेकिन जो कर्मचारी आपके यहाँ काम करते हैं, दान के भाव से ही सही, उनका सही भरणपोषण हो जाए, इतना-सा धर्म कर लो तो भी काफ़ी है।
मेरे निवेदन पर कुछ मित्रों ने मिलकर संबोधि सेवा-परिषद में दवा बैंक तैयार किया है। ये लोग बड़ी बीमारी के इलाज के लिए महँगी दवाएँ चालीस प्रतिशत कम मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं। किसी के काम आने का यह भी एक प्रभावी तरीक़ा है। यह धर्म का सहज और सरल रूप है। अब हम लोगों के लिए सहज में यह तो संभव नहीं है कि हम कोई बड़ा अस्पताल बनाएँ, पर कम मूल्य पर किसी ज़रूरतमंद को दवा तो दिलवा ही सकते हैं। दान के मामले में हमारी प्राथमिकताएँ तय होनी ही
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