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तुम्हारी मौत यहीं लिखी थी। मैं चिंता में थी कि तुम यहाँ कैसे पहुँच पाओगे, लेकिन तुमने कमाल कर दिया, यहाँ आकर मेरा काम आसान कर दिया। याद रखो, मौत जहाँ आनी होती है, वहीं आती है। जो तय है, उससे क्या भागना। उसके बारे में विचार भी क्या करना? ।
नचिकेता ने पिता से कहा, 'आप मुझे जाने की अनुमति दें। मैं यम के पास सशरीर पहुँचने वाला हूँ। मुझे तो इसी बात की खुशी है कि मैं आपके आदेश की पालना कर रहा हूँ। मुझे तो यमलोक जाने में कोई दिक्कत ही नहीं है। जो ज्ञान मुझे यहाँ नहीं मिला, वह मैं यमराज से सीलूंगा। वे तो आखिर मृत्यु के देवता हैं। मृत्यु के बारे में उनसे बेहतर कौन बता सकता है ?' नचिकेता की बात सुनकर संभव है, उद्दालक कलपे होंगे। उनका खाना-पीना छूट गया होगा, लेकिन नचिकेता निकल पड़े।
नचिकेता आखिर सशरीर यमलोक पहुँचे। वे बहुत बड़े साधक रहे होंगे, तभी तो सशरीर यम के द्वार तक पहुँच सके । नचिकेता के यमलोक पहुँचते ही वहां तहलका मच जाता है। ऐसा कौन-सा प्राणी है, जो सशरीर यमलोक पहुँचने में सफल हो गया। यमलोक के दूत हैरत में पड़ गए। चित्रगुप्त तक बात पहुँची, तो उन्होंने अपनी बही के पन्ने पलटे। वहाँ ऐसे किसी प्राणी के आगमन के बारे में जानकारी नहीं थी। अभी नचिकेता का जीवन पूरा नहीं हो पाया था, इसलिए वहाँ उनका आगमन अपने आप में हर किसी के लिए आश्चर्य का कारण बन रहा था।
नचिकेता यमलोक के द्वार पर बैठ गए। उन्होंने भीतर संदेश पहुँचाया कि यमराज से मिलना है। यमराज वहाँ थे नहीं। वे किसी काम से अन्य लोक की यात्रा पर गए थे। नचिकेता ने कहा, 'मैं यहीं, द्वार पर उनका इंतज़ार करूँगा। मैं यमराज को दिया गया दान हूँ, इसलिए उनसे ही मुलाकात करूँगा। द्वारपाल ने पूछा, 'क्या तुम्हें मृत्यु से कोई भय नहीं?' नचिकेता मुस्कुराया और कहने लगा, 'मृत्यु से कैसा भय ? मैं तो उनके दत्तक पुत्र की तरह हूँ । मेरे पिता ने मुझे उनको दिया है। इसलिए मृत्यु भी मेरे पिता की तरह है।' सारे यमलोक में नचिकेता की इस बात से हलचल हो गई। चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। यहीं से शुरू होती है कठोपनिषद् की मुख्य धारा, जो विभिन्न रास्तों से होती हुई कई संदेश लिये धरती पर पहुँचती है। क्या हैं ये संदेश, नचिकेता की यम से मुलाकात क्या रंग लाती है, क्या वे उनका सामना कर पाते हैं, क्या नचिकेता फिर से धरती पर लौट पाते हैं ? इन सवालों के जवाब आप आने वाले में पृष्ठों में पढ़ेंगें।
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