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मिलने आया हूँ। मैं अपने पिता द्वारा यमराज को दान में दिया गया हूँ । द्वारपालों के लिए भी समस्या रही होगी कि आखिर यह जीव सशरीर यमलोक तक पहुँचा तो कैसे पहुँचा ? यमलोक में तो कोई स्वेच्छा से नहीं आता । या तो यमराज स्वयं किसी प्राणी को लेकर आते हैं या उनके दूत लेकर आते हैं; और वह भी केवल उनकी सूक्ष्म चेतना को । सशरीर किसी का आना यमलोक में हलचल मचाने के लिए काफी था । जीवित अवस्था में पहली बार कोई प्राणी यमलोक पहुँचा था । कोई प्राणी स्वेच्छा से यमलोक पहुँचता है, तो उसके लिए किसी यमदूत की आवश्यकता नहीं होती। यह उस व्यक्ति की सिद्धियों का परिणाम हो सकता है ।
यमराज तक संदेशा पहुँचता तो वे निश्चित रूप से इस बारे में चिंतन-मनन करते । आश्चर्य में भी पड़ते कि मैं दुनिया को दान देता हूँ, ये मुझे देने वाला कौन पैदा हो गया। वे तत्काल यमलोक के द्वार पर आते, लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि यमराज वहां थे ही नहीं। किसी अन्य लोक की यात्रा पर गए हुए थे । यमलोक में उनकी पत्नी यमी थी । यमी तक संदेश पहुँचा कि कोई किशोर सशरीर यमलोक के द्वार तक पहुँच गया है और महाराज यमराज से भेंट करने का अभिलाषी है। यदि वहाँ यमराज होते और यह संदेश उन तक पहुँचता, तो संभव है संदेश ले जाने वाला दुत्कार दिया जाता, लेकिन नियतिवश यह संदेश यमी के पास पहुँचा । यमी मृत्यु की देवी ! नारी होने के कारण स्वभाव से ही कोमल । पुरुष स्वभाव से कठोर होता है, निष्ठुर होता है लेकिन नारी प्रकृति की ओर से प्रदत्त गुणों के कारण सौम्य, सुकोमल होती है । वह घर आए मेहमान का सम्मान करना जानती है । वह पिघल जाया करती है। नारी प्रेम, आतिथ्य और समर्पण की मूर्ति होती है ।
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संदेश लेकर पहुँचे यमदूतों को यमी ने कहा कि वे अतिथि को अतिथिशाला में ठहराएँ। उनके भोजन की व्यवस्था करें । यमराज बाहर गए हैं। वे लौटते ही उनसे अतिथि की मुलाकात की व्यवस्था कर देंगी । नचिकेता तक उत्तर पहुँचा, लेकिन उन्होंने इनकार करते हुए कहा कि वे केवल यमराज को प्रदत्त हैं, इसलिए उनसे भेंट किए बिना कुछ भी न करेंगे। यमराज के आने तक यमलोक के द्वार पर ही इंतज़ार करेंगे। यमी ने आतिथ्य सत्कार के लिए फल आदि भेजे, लेकिन नचिकेता ने विनम्रतापूर्वक उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया ।
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नचिकेता ने मौन व्रत धारण कर लिया । उपवास तो था ही, वे पाँवों पर खड़े होकर यमराज का इंतज़ार करने लगे। द्वार के बाहर कोई भूखा-प्यासा खड़ा रहे, यह किसी के लिए भी शोभनीय बात नहीं होती। जब सामान्य इंसानों के लिए यह शोभनीय नहीं है, तो ऐसा विशिष्ट, ज्ञानी व्यक्ति द्वार पर भूखा-प्यासा खड़ा रहे, तो यह कतई शोभनीय नहीं हो सकता ।
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