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कहने को तो आदमी खूब कहता है - सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था, आज भी है और कल भी रहेगा - पर ये बातें कब यादें बनकर रह जाती हैं, इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। अभी लगता है घर है, दूसरे ही पल खण्डहर होते देर नहीं लगती। सब कुछ परिवर्तनशील है । कठोपनिषद् की यह गाथा यमराज व नचिकेता के माध्यम से जीवन का संदेश दे जाती है। पूरा प्रसंग एक दर्शन है। यह भी चला जाएगा, सब कुछ बदल जाएगा। गुजरात में कुछ साल पहले आए भूकंप ने सब कुछ समाप्त कर दिया। बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ धराशायी हो गईं। बस्तियों की बस्तियाँ जमींदोज हो गईं। इसलिए हम अतीत और भविष्य के झूले में झूलने की बजाय आज का आनन्द लें। ईश्वर उन्हें जीवन की समझ दे, जो 'कल' की चिंता में अपना 'आज' खराब कर रहे हैं।
एक बात याद रखें, जो चोंच देता है, वह चुग्गा भी देता है। हमारा जन्म बाद में होता है, माँ का आँचल दध से पहले भर जाता है। हम व्यर्थ की चिंता न करें। जो है, उसका आनन्द लें। जो नहीं है, उसका गम न पालें। रोने से दुख हल्का नहीं होता, और बढ़ता ही है। परिस्थितियों के आगे घुटने मत टेको। घुटने टेक देना, आत्महत्या के समान ही है। सामना करो। विश्वास रखो, ईश्वर हमारे साथ है। भला जब ईश्वर ने हमें पुंसत्व दिया है, तो हम अपनी चेतना को, अपने मन को नपुंसक क्यों बनाएँ ? ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, कल मौत ही तो आएगी, आने दो। याद रखो, समय से पहले कुछ नहीं होता। मौत भी तभी आएगी, जब उसे आना होगा। फिर क्यों वर्तमान के आनन्द को ठुकरा रहे हो।
मैं हमेशा आनन्दित रहता हूँ। प्रभु ने ऐसे छातीकूटे दिए भी नहीं कि परेशान होना पड़े। सुबह और शाम प्रार्थना में बीत जाती है। घाणी का बैल नहीं बना। जिन्दगी को धोबी के गधे की तरह नहीं जीता। बोधपूर्वक जीता हूँ, आनन्दित रहता हूँ। शांत रहना जीवन का फैसला है और अपने फैसले पर अडिग रहना, यही आनन्द का राज़ है। आनन्द जीवन का ही तो अनुष्ठान है। सांस-सांस में प्रभु का आनन्द है । हर प्राणी और हर इंसान प्रभु की ही चलती-फिरती मूरत है। मंदिर-मस्जिद का भगवान तो मौन है, पर ये जो चलती-फिरती दुनिया है, इस रूप में भगवान हमसे हजार रूप में बोलता और बतियाता है। तुम प्रभु से प्यार करो, प्रभु तुमसे प्यार करेंगे। तुम दुनिया से प्यार करो, दुनिया तुमसे प्यार करेगी। दुनिया यानी प्रभु, प्रभु यानी दुनिया। दुनिया प्रभु की ही माया है। समझ आ जाए, तो हर ठौर प्रभु का मंदिर है; समझ न आए तो कहीं धूप, कहीं छाया है।
जीवन तो किसी वृक्ष की तरह है। बंदर की तरह उछल-कूद करनी है या पंछी की तरह उड़ना है, यह आपको ही तय करना पड़ेगा। मौका देखकर उड़
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