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नचिकेता को बात समझ में आ गई। पिता ने कह दिया कि मैं तुझे मृत्यु को देता हूँ, तो उन्होंने खुद को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वे यम से साक्षात्कार करेंगे। पिता उद्दालक को क्रोध में कहे अपने शब्दों का परिणाम क्या होगा, यह बात तब समझ में आई, जब उनका क्रोध शांत हो गया। वे विचार करने लगे कि मैंने नचिकेता को यह क्या कह डाला। क्रोध के दौरान कोई भी व्यक्ति अवांछित शब्दों का प्रयोग कर ही डालता है। कौन सोच सकता है कि कोई पिता अपने पुत्र को मृत्यु को सौंप सकता है, लेकिन क्रोध में कुछ भी समझ में नहीं आता। क्रोध होता ही बेलगाम है। उठता है तो आँधी की तरह उठता है। उठता है, तो बर्बादी का मंजर फैला जाता है। यह क्रोध ही था कि उद्दालक ने अपने प्रिय पुत्र को यमराज को दान में दे दिया। भले ही गुस्से में दिया, पर दे तो डाला।
यह तो नचिकेता जैसे पत्र की विनम्रता थी कि उसने पिता के वचनों को स्वीकारा और उसी के अनुरूप आचरण करने का फैसला किया। यह पुत्र का दायित्व होता है कि वह पिता के शब्दों का सम्मान करे। दो ही विकल्प हैं, या तो पुत्र अपने पिता द्वारा कही बात का कोई जवाब न दे, या फिर उनके शब्दों का सम्मान करने में जुट जाए। नचिकेता ने दूसरा विकल्प चुना। वह उनके आदेश की पालना को तत्पर हो गया। घर से निकल गया। पुत्र-धर्म का निर्वाह करते हुए अंततः उसने बिना किसी चिंता में पड़े यमराज से साक्षात्कार का फैसला किया। यमराज से साक्षात्कार यानी मृत्यु से मुलाकात।
चिंता तो अज्ञानी करता है, ज्ञानी परिस्थितियों का सामना करता है। उन्हें चुनौती मानकर उन पर विजय प्राप्ति के प्रयासों में जुट जाता है । कठोपनिषद् में कही गई बातें जीवन का सार प्रस्तुत करती हैं। इसका आनन्द लें। यमराज के पास जाकर नचिकेता को क्या मिलेगा? कोई ज्ञान का ख़ज़ाना या मौत? नचिकेता इस बात को समझने का प्रयास करता है कि पिता ने कुछ कहा है, तो उसमें उसका बुरा तो हो नहीं सकता, भला ही होने वाला है। क्या होगा, यह वहाँ जाकर ही मालूम हो सकता है। पिता ऋषि हैं, वेदों के ज्ञाता हैं। उनके मुँह से कोई बात यूँ ही तो नहीं निकल सकती। हर बात का कोई-न-कोई कारण होता है, अर्थ होता है; बस हमें समय से पहले उसका मर्म समझ में नहीं आता।
एक आदमी कहीं जाने वाला था। वह बस स्टैण्ड पर खड़ा बस का इंतज़ार कर रहा था। बस आई, तो उससे आगे खड़ा एक मोटा व्यक्ति बस में प्रवेश करने के प्रयास में गेट पर ही फँस गया। अब न तो कोई सवारी उसमें से उतर सकती थी और न ही नीचे से कोई बस में चढ़ पा रहा था। पीछे खड़े आदमी ने उस मोटे आदमी को ज़ोरदार लात लगाई, मोटा आदमी बस के भीतर जा गिरा। वह उठा
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