Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 20
________________ है । ऋषि का मतलब होता है ऋजुता । जिसमें ऋजुता आ गई, वह ऋषि । ऋजुता यानी सरलता । जो सरलता के मालिक हो गए, वे ऋषि । ऋषित्व यानी सरल, परस्पर द्वेष न करने वाले एक-दूसरे का भला चाहें। गुरु शिष्य का हित देखे और शिष्य गुरु का । एक बार समर्थ गुरु रामदास अपने शिष्य छत्रपति शिवाजी के साथ दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले। बीच रास्ते में तेज बारिश होने लगी । एक स्थान पर नदी आ गई। गुरु और शिष्य विचार करने लगे कि उसे कैसे पार किया जाए। गुरु ने शिष्य से कहा, 'शिवा, तुम ठहरो, पहले मैं नदी पार करता हूँ । यदि नदी पार करने योग्य स्थिति बनी, तभी आगे बढ़ेंगे। शिवाजी ने कहा, 'ऐसा नहीं हो सकता । आप रुकिए, मैं पहले नदी पार करता हूँ ।' गुरु न माने । शिष्य भी जिद करने लगा। आखिर गुरु ने हथियार डाल दिए और शिवाजी ने कुछ ही देर में नदी पार कर ली। वे सकुशल दूसरे किनारे पहुँच गए, तो उन्होंने गुरु को आवाज़ दी, 'अब आप बेहिचक नदी पार कर सकते हैं । ' गुरु ने भी नदी पार की और दोनों फिर से साथ-साथ चलने लगे । यकायक गुरु ने शिवाजी से नाराजगी प्रकट करते हुए कहा, 'आज मुझे अफसोस हो रहा है। आज पहली बार मेरे शिष्य ने मेरी बात नहीं मानी।' शिवाजी हैरान, पूछने लगे, 'मैंने आपकी किस आज्ञा का पालन नहीं किया गुरुदेव ?' गुरु रामदास बोले, 'नदी को पहले मैं पार करना चाहता था, लेकिन तूने मेरी बात नहीं मानी। ज़रा सोच, नदी गहरी होती और तू डूब जाता, तो मैं दुनिया को कैसे मुँह दिखाता ?' शिवाजी ने कहा, 'गुरुदेव, आपकी नाराजगी उचित है, लेकिन मैं आपको पहले नदी में कैसे उतरने देता ? मैं नदी में डूब जाता तो आप मेरे जैसे छत्तीस शिवाजियों को पैदा कर देते, लेकिन यदि आपको कुछ हो जाता, औक़ात कहाँ है कि मैं एक भी समर्थ गुरु रामदास को पैदा कर पाता ।' तो मेरी इतनी घटना मार्मिक है । गुरु और शिष्य के बीच के संबंधों के साथ ही घटना इस बात की ओर भी संकेत करती है कि गुरु और शिष्य दोनों को एक-दूसरे की चिंता करनी चाहिए। वे किस तरह एक-दूसरे को आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं ? एक-दूसरे की विद्या को और तेजोमयी बनाने के लिए किस तरह के भाव मन में रखते हैं ? गुरु अपने शिष्य की रक्षा कर रहा है और शिष्य अपने गुरु की। इसी का नाम है, ओम ! 'सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै, तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।' यह है वह तरीका जिसे हम कह सकते हैं – दोनों - Jain Education International 19 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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