Book Title: Mantungacharya aur unke Stotra
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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माना
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उनकी मानी जानेवाली अन्य कृतियों को नहीं । भक्तामर का हिन्दी एवं गुजराती अनुवाद बहुत सारे विद्वानों द्वारा किया जा चुका है, जो विविध प्रकाशनों में, कहीं-कहीं सान्वय भी उपलब्ध है । लेकिन इनमें से कुछ में कहीं-कहीं, कभी-कभी, मूलकर्त्ता के अभिप्राय से बढ़कर, प्रायः वृत्तिकार जैसी हैसीयत से भी लिखा गया है । पद्यों का सान्वय 'पंचांग विवरण' भक्तामर सम्बद्ध कुछ पुस्तिकाओं में दिया गया है, जो उपयुक्त होने से वहीं देख लेना चाहिए । हाँ ! भयहरस्तोत्र के मूल प्राकृत पद्यों का- छायारूप एवं समान्तर (parallel) संस्कृत पद्यों को दो अलग-अलग मध्यकालीन वृत्तिकारों के आधार पर हमने यहाँ समाविष्ट अवश्य किया है । ( इसका एक हेतु यह भी रहा है कि वह स्तोत्र भी मानतुंग का बनाया हुआ है, इस परम्परा की कुछ हद तक स्पष्टता एवं परीक्षण भी उसकी शैली एवं शब्दों के लगाव - चुनाव के आधार पर हो सके; और यह तथ्य तो वर्तमान सन्दर्भ में प्राकृत से भी संस्कृत रूप में विशेष सरलता से देखा जा सकता है ।)
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सम्प्रति पुस्तक में जो कुछ प्राचीन मूल स्रोतों एवं सांप्रतकालीन लेखनों का उपयोग किया है उनके लेखकों तथा प्रकाशकों के हम कृतज्ञ हैं । मुद्रण योग्य नकल बनाने में मूल मसौदे को हिन्दी भाषा के व्याकरण एवं अक्षरी, विवर्तनी, और कहीं कहीं शब्दों की दृष्टि से मित्रवर रामेश्वर शर्मा, डा० उमेशचन्द्र सिंह और उनके अनुज डा० इन्द्रेशचन्द्र सिंह, वाराणसी में देख चुके थे और यहाँ पं० मृगेन्द्रनाथ झा भी सावधानी से देख चुके है । उनके योग्य संशोधनों को, चर्चा - विचारणा के पश्चात्, हम यहाँ स्वीकार किया है । इस ग्रन्थ में प्रयुक्त हिन्दी को सर्वथा संस्कृतप्रधान, एकान्त संस्कृतनिष्ठ नहीं अपितु राष्ट्रभाषा के आदर्शों के अनुरूप एवं अनुकूल स्वरूप देना चाहा था, इसलिए इसमें अरबीफारसी अल्फाज़ वर्जित नहीं माना है । जहाँ योग्य हिन्दी शब्द नहीं मिल पाये वहाँ ( और अर्थच्छाया को विशेष स्पष्ट बनाने के लिये) कहीं-कहीं गुजराती एवं मराठी भाषा में प्रचलित शब्दों का भी इस्तेमाल किया है और कोष्ठक में इनका अंग्रेजी पर्याय बता दिया है । एकाध दृष्टांत में अंग्रेजी से भी शब्द यथातथ ग्रहण किया है । हमारी बिनती को स्वीकार कर के इस पुस्तक के लिए डा० जगदीशचन्द्र जी ने “पूर्वावलोकन” एवं पं० दलसुख मालवणिया जी ने " पुरोवचन" लिखा है । निर्ग्रन्थविद्या के इन दोनों मूर्धन्य विद्वानों के हम कृतज्ञ हैं ।
इस पुस्तक की प्रथम पांडुलिपि पश्चिमी नागरी के हिसाब से श्रीमती गीतांजलि ढांकी ने तैयार की थी, जिसके आधार पर उत्तर प्रदेश की नागरी में डा० इन्द्रेशचन्द्र सिंह ने सुंदर अक्षरों में दूसरी प्रतिलिपि तैयार की । हम इन दोनों के परिश्रम के लिए आभारी हैं एवं लिपि - लेखन में शुद्धि के पहलू पर दिये गये लक्ष्य के लिये उनको धन्यवाद भी देना चाहते हैं । शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर के कोम्प्युटरविद् श्री रमेशभाई पटेल ( और द्वितीयावृत्ति के सन्दर्भ में सुदेश शाह) ने मुद्रणार्थ नकल बनाई और प्रुफ रीडर नारणभाई पटेल एवं पं० मृगेन्द्रनाथ झा द्वारा छपे हुए पूरे पाठ को आखरी वक्त
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