Book Title: Mantungacharya aur unke Stotra
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 25
________________ मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र नम्रामरेषु मणिमौलितटीषु येषां पादा:सुखेन नखकोटि निशामटकैः । सौवीं लिखन्ति नु जगद्विजयप्रशस्तिं स्तोष्ये चतु:सहितविंशतिमहदस्तान् ।।१।। - स्तु० त० भाग ३, पृ० २६६ औ) देवकुलपाटक-चिंतामणि-पार्श्वनाथ-स्तोत्र (प्राय: १५वीं शती मध्यभाग) नमद्देवनागेन्द्रमन्दारमाला मरन्दच्छटा धौतपादारविन्दं । परानंद सन्दर्भ लक्ष्मीसनाथं स्तुवे देव चिन्तामणि पार्श्वनाथम् ।।१।। DCMBRI, P. 305 अं) ज्ञानभूषण कृत जिनस्तुति (प्राय: १६वीं शती ?) नम्रामरेश्वर किरीटनिविष्टशोण रत्नप्रभापटलपाटलिताघ्रिपीठाः । तीर्थेश्वरा: शिवपुरीपथसार्थवाहाः निःशेषवस्तु परमार्थविदो जयन्ति ।।१।। - जै० स्तो० सं० भाग १, पृ० ५३ . ५. इस विषय पर प्रा. हीरालाल कापड़िया का मत हम आगे प्रस्तुत करेंगे । ६. Hermann Yacobi, Indische Studien, 14, 1876, p. 359 pp.1. इसके अलावा उनकी “Foreword", भक्तामरकल्याणमंदिरनमिउणस्तोत्रत्रयम्, सं० हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रन्थांक ७९, मुंबई १९३२. Harmann Yacobi' का उच्चार 'हर्मण 'यकोबी' होता है ऐसा उन्होंने (स्व०) कापड़ियाजी को स्वहस्त में नागरी लिपि में लिख के दिया था, और संपादकों ने इस बारे में जगदीशचन्द्र जी को वाकेफ़ किया था । (सन्दर्भ के लिए देखिये कापड़िया, “स्तुति-स्तोत्रोनुं पर्यालोचन," जैनयुग, वैशाख १९८३, पृ० ४४७, टिप्पण १). ७. काव्यमाला, सप्तम गुच्छक (द्वितीय संस्करण), मुंबई १८९६, पृ० १-१०. ८. “भूमिका", भक्तामरस्तोत्र, मुंबई १९१६, तथा “भूमिका", आदिनाथ स्तोत्र, षष्ठावृत्ति, मुंबई १९२३. (यह ग्रन्थ हमें मिल नहीं पाया ।) ९. श्रीप्रभावकचरित (भाषान्तर) (गुजराती), श्री जैन आत्मानंद ग्रंथमाला नं० ६३, भावनगर वि० सं० १९८७ (ईस्वी १९३२), पृ० ६८-७० ; तथा वहाँ “मानसुरि प्रबन्ध", पृ० १७२-१८३. १०. संस्कृत “भूमिका", भक्तामरकल्याणमंदिरनमिउणस्तोत्रत्रयम्, मुंबई १९३२, पृ०१-३८, तथा वहीं गुजराती "भूमिका", पृ० १-३४ ; तदतिरिक्त जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, खंड २ उपखंड १, (गुजराती), श्री मुक्ति-कमल-जैन-मोहन-माला : पुष्प ६४, सूरत १९६४, पृ० ३१३-३१९. ११. “प्रस्तावना", पूर्वाचार्य विरचित महाप्रभाविक नवस्मरण, (गुजराती), अहमदाबाद १९३८, पृ० ३१५-४५९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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