Book Title: Mantungacharya aur unke Stotra
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 127
________________ ११० (चन्द्रकुल) मानदेव मानतुंग ( प्रथम ) बुद्धिसागर पद्युम्न देवचन्द्र मानदेव पूर्णचन्द्र मानतुंग (द्वितीय) Jain Education International पद्मदेव (सं० १२९२ / ई० स० १२३६ ) (देखिए Catalogue of Palm -Leaf Manuscripts in the Santinatha Jain Bhandara, Cambay, Pt. 2, GOS No. 144, Baroda 1966, pp. 259-261.) बृहद्गच्छीय मानतुंग का उल्लेख मलयप्रभ की जयन्तीचरित्रटीका (सं० १२६० / ई० स० १२०४) जयन्ती प्रश्नोत्तरसंग्रह वा सिद्धजयन्ती की प्रशस्ति में मिलता है । यथा : सर्वदेव जयसिंह मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र चन्द्रप्रभ 1 धर्मघोष शीलगण मानतुङ्ग मलयप्रभ (सं० १२६० / ई० स० १२०४ ) ( हमें यह सूचना मोहनलाल दलीचंद देशाइ के जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मुंबई १९३२, पृ० ३४०, क्र० ४९४ से प्राप्त हुइ है । जिनका आधार पीटर्सन रिपोर्ट ३.४५ था ।) १२. भरुच से प्राप्त श० सं० ९३० / ईस्वी १००८ के धातु प्रतिमा लेख में नागेन्द्र कुल अंतर्गत विजयतुंगाचार्यगच्छ का उल्लेख हैं । देखिए U.P.Shah, “A Dated Jaina Bronze from Broach (Gujarat), fashioned by Artist Govinda" Lalit-Kala 23, pp-19-20; For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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