Book Title: Mantungacharya aur unke Stotra
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 137
________________ १२० मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र त्वन्नाममन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्त: सद्यः स्वयं विगतबन्धभया भवन्ति ।।४२।। मत्तद्विपेन्द्र-मृगराज-दवानलाहि सङ्ग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम् । तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ।।४३।। स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धाम् भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठगतामजस्रं तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः ।।४४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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