Book Title: Mantungacharya aur unke Stotra
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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भक्तामर की पद्यसंख्या
६०. "प्रस्तावना," भ० र०, पृ० १९-२०. ६१. देखिए उनकी “भूमिका," भक्तामर०, पृ. ३. ६२. वहीं, “गु० प्र०," पृ० १४. ६३. देखिए “नामकरण तथा पद्यप्रमाण,” भ० र०, पृ० ४९. ६४. देखिए "प्रश्न ७३८," और उसका “समाधान," सागर समाधान, भाग १, श्री जैन पुस्तक प्रचारक संस्था, सूरत,
दूसरी आवृत्ति, वि० सं० २०२८ (ईस्वी १९७२), पृ० २८७-२८८. ६५. इस पर हमारी ओर से सविस्तर चर्चा अन्यत्र (निर्ग्रन्थ-२ में) हो चुकी है, और वहीं देख लें । ६६. कुछ हेमचन्द्रादि मध्यकालीन श्वेताम्बर कर्ताओ ने अलबत्ता उसी क्रम में रखने का प्रयास जरूर किया है, लेकिन
सरसरी तौर पर वर्णना में ऐसा क्रम देखने को नहीं मिलता है ।) ६७. देखिए “शान्तिभक्ति,” हु० श्र० पा०, पृ० १३२. ६८. वही ग्रन्थ, पृ० ३२, पद्य १. ६९. देखिए, सिद्धान्तसारादिसंग्रहः, सं० पन्नालाल सोनी, माणिकचन्द्र-दिगम्बर-जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थ २१, बम्बई वि०
१९७९ (ईस्वी १९२३). ७०. जिस स्तुति में से यह पद्य उद्धृत किया गया है, वह स्रोत अभी अनुपलब्ध होने के कारण दिखा नहीं पाये । अत:
क्षमापार्थी हैं ।
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