Book Title: Mantungacharya aur unke Stotra
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 118
________________ स्तोत्रकर्ता का समय १०१ टिप्पणियाँ : १. देखिए Hermann Jacobi, “Foreword," pp. 1-VIII, भक्तामर०, सं० हि० र० कापड़िया, ___Bombay 1932. २. वही. ३. कापड़िया, भक्तामर०, “भूमिका," पृ० २०-२१. ४. जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, वडोदरा १९६८, पृ० ३१३, ३१४. 4. A. Berriedale Keith, A History of Sanskrit Literature, reprint, London 1961, p. 215. ६. Maurice Winternitz, A History of Indian Literature, Vol-II. Sec.ed., reprint, Dellhi ____1977 p. 549 : and H. Von Glasenapp, Jainism, Delhi 1998, p. 149. ७. Jacobi, “Foreword," भक्तामर०, p. VII. ८. कापड़िया, भक्तामर०, “भूमिका," पृ० १२. ९. श्रीअममस्वामिचरित्र, प्रथम विभाग, सं० विजयकुमुदसूरि, अमदावाद वि० सं० १९९८ (ईस्वी १९४२), पृ. २. १०. कापड़िया, “भूमिका," पृ० १२. ११. वही ग्रन्थ, पृ० १९. १२. "आचार्य मानतुंग," अनेकान्त, १८-६, फेब्रु० १९६६, पृ० २४२. १३. "प्रस्तावना," सचित्र भक्तामर रहस्य, सं० पं० कमलकुमार जैन शास्त्री 'कुमुद', देहली १९७७, पृ० ३१, ३७. १४. उपदेशमाला-सटीका, प्र० पं० हीरालाल हंसराज, जामनगर १९३९, पृ० १३४. १५. "भक्तामर स्तोत्र," जै० नि० २०, पृ० ३३८. १६. भक्तामर स्तोत्रम्, द्वि० सं०, वाराणसी १९६९, पृ० १५-१६. १७. देखिए कापड़िया, भक्तामर०, मूलपाठ, पृ० १ तथा कापड़िया, चतुर्विंशतिका, मूलपाठ, पृ० १. १८. पद्य इस प्रकार है । नमस्तुभ्यं भवांभोधि-निमजजंतु-तारिणे । दुर्गापवर्ग-सन्मार्ग-स्वर्ग-संसर्ग-कारिणे ॥७२८॥ नमस्तुभ्यं मनोमल्ल-ध्वंसकाय महीयसे । द्वेषद्विप-महाकुम्भ-विपाटन-पटीयसे ॥७२९॥ देखिए अज्ञातकर्तृक प्रबन्ध-चतुष्टय, सं० रमणीक म० शाह, अहमदाबाद १९९४, पृ० ६८, ७२८-७२९. १९. समाधि-शतक, सं० राउजी नेमचंद शाह, द्वितीय संस्करण, अलिगंज १९६२. २०. इस विषय में यहाँ थोड़ा सा और बताया जायेगा । २१. समन्तभद्र के समय सम्बद्ध विस्तार से चर्चा निर्ग्रन्थ तृतीय अंक, अहमदाबाद १९९७ में "स्वामी समन्तभद्रनो समय" नामक लेख में होने जा रही है । २२. यहाँ जो उद्धरण लिये गये हैं वे सब Siddhasena's :Nyayavatara., pp. 125, 114, 143. (सिद्धसेन का समय विषयक चर्चा हमारी श्री बृहद निर्ग्रन्थ स्तुतिमणिमंजूषा की "प्रस्तावना" में हो रही है ।) २३. (मूल) संपादक हॅरमान्न यकॉबी, सं० मुनि पुण्यविजय, वाराणसी २९६२, पृ० ११, १२. २४. आप्तमीमांसा का सुप्रसिद्ध प्रथम श्लोक का प्रथम चरण : देवागम नभोयान चामरादि विभूतयः आदि । २५. स्वयम्भूस्तोत्र, सं० पं० जुगल किशोर मुख्तार, सहारनपुर १९५१, पृ० २२. २६. डा० रुद्रदेव त्रिपाठी, "भक्तामर स्तोत्र काव्य समीक्षा," भक्तामर रहस्य, पृ० ४०३-४०४. २७. वही, पृ० ३९५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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