Book Title: Mantungacharya aur unke Stotra
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ २६ मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र का वास्तविकता से कोई मेल नहीं । भक्तामर के किसी वृत्तिकार ने ऐसा नहीं बताया है । यह बात बिलकुल ही मान्य नहीं हो सकती है । इस विषय में पं० अजयकुमार जैन शास्त्री ने जो कुछ और कहा है, यहाँ प्रस्तुत करके उस पर गौर करेंगे । उनका कहना है कि “श्वेताम्बर सम्प्रदाय में कल्याणमन्दिरस्तोत्र तो दिगम्बर सम्प्रदाय के समान ४४ श्लोकों वाला ही माना जाता है किन्तु भक्तामरस्तोत्र को श्वेताम्बर सम्प्रदाय, ४८ श्लोकों वाला न मानकर ४४ श्लोकों वाला ही मानता है । ३२-३३-३४-३५ नंबर के चार पद्य श्वेताम्बर सम्प्रदाय ने अपने भक्तामरस्तोत्र में से निकाल दिए हैं । इसीसे प्रचलित भक्तामरस्तोत्र साम्प्रदायिक भेद से दो रूप में पाया जाता है । भक्तामरस्तोत्रमें दिगम्बर सम्प्रदायकी मान्यतानुसार ४८ श्लोक ही क्यों नहीं हैं ? इसका उत्तर तीन प्रकार से प्राप्त होता है । एक तो यह कि जब कल्याणमन्दिरस्तोत्र ४४ श्लोकों का है तब उसकी जोड़का भक्तामर स्तोत्र भी ४४ श्लोकों का होना चाहिए वह ४८ श्लोकों का कैसे हो ? दूसरे, भरतक्षेत्र के २४ तीर्थंकर और विदेह क्षेत्रों के २० वर्तमान तीर्थंकरों की कुल संख्या ४४ हुई, इस संख्या के अनुसार भक्तामरस्तोत्र के श्लोकों की संख्या भी ४४ होनी चाहिये । तीसरे, श्वेताम्बर जैन गुरुकुलके एक स्नातकसे यह उत्तर प्राप्त हुआ कि भक्तामर स्तोत्र क मंत्रशक्ति से पूर्ण स्तोत्र है । उसके मंत्रों को सिद्ध करके मनुष्य उन मंत्रों के अधीन देवों को बुला बुला कर तंग करते थे । देवोंने अपनी व्यथा मानतुंगाचार्य को सुनाई कि, महाराज ! आपने भक्तामर स्तोत्र बनाकर हमारी अच्छी आफ़त ले डाली । मंत्रसिद्ध करके लोग हमें चैनसे नहीं बैठने देते हर समय मंत्रशक्ति से बुलाबुलाकर हमें परेशान करते रहते हैं । मानतुंगाचार्यने देवों पर दया करके भक्तामरस्तोत्र में से चार श्लोक निकाल दिये । अतः भक्तामर ४४ श्लोकोंवाला ही होना चाहिये । यदि इन समाधानों पर विचार किया जाय तो तीनों ही समाधान निःसार जान पड़ते हैं । मानतुंगाचार्य और कुमुदचन्द्राचार्य का आपस में कोई समझौता नहीं था कि हम दोनों एक-सी ही संख्या के स्तोत्र बनायें । हरएक कवि अपने अपने स्तोत्र की पद्य - संख्या रखने में स्वतंत्र है । दूसरे मानतुंगाचार्य कुमुदचन्द्राचार्य से बहुत पहले हुए । अतः पहली बात के अनुसार भक्तामर के श्लोकों की संख्या ४४ सिद्ध नहीं होती । दूसरा समाधान भी उपहासजनक है । भिन्न भिन्न दृष्टि से तीर्थंकरों की संख्या २४-४८-७२ आदि अनेक बतलाई जा सकती है । भरतक्षेत्र के २४ तीर्थंकर हैं तो उनके साथ समस्त विदेह के २० तीर्थंकर ही क्यों मिलाये जाते हैं ? ऐरावतक्षेत्र के २४ तीर्थंकर या ढाई - द्वीप के समस्त भरतक्षेत्र के तीर्थंकरों की संख्या क्यों नहीं ली जाती ? तीर्थंकरोंकी संख्या के अनुसार स्तोत्रों की पद्य संख्या का ही मानना नितान्त भोलापन है और वह दूसरे स्तोत्रों की पद्य - संख्या को दूषित कर देगा । अतः दूसरी बात भी व्यर्थ है । अब रही तीसरी बात, उसमें भी कोई सार प्रतीत नहीं होता क्योंकि भक्तामरस्तोत्र का प्रत्येक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154