Book Title: Mantungacharya aur unke Stotra
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र
इस '४४ विरुद्ध ४८' पद्यों की समस्या पर विशेष विचार करने से पहले दिगम्बर-मान्य पाठ के जो चार अधिक पद्य हैं, उन्हें देख लेना आवश्यक है । ये अतिरिक्त चार पद्य चार और महाप्रातिहार्य—देवदुन्दुभि, पुष्पवृष्टि, भामण्डल और दिव्यध्वनि से सम्बद्ध हैं । ये पद्य श्वेताम्बर-मान्य मूल कृति के ३१वें पद्य के बाद ३२से ३५ क्रम में मिलते हैं, एवं दिगम्बर सम्प्रदाय में मूलकर्ता के और इसलिए प्रमाणभूत माने जाते हैं । यथा :
गम्भीर-तार-रव-पूरित-दिग्विभाग
त्रैलोक्य-लोक-शुभ-संगम-भूति-दक्षः । सद्धर्मराज-जय-घोषण-घोषक: सन्
खे दुन्दुभिर्नदति ते यशस: प्रवादी ।। मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात,
सन्तानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टि-रुद्धा । गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रयाता
दिव्या दिवः पतति ते वयसां ततिर्वा ।। शुम्भत्प्रभा-वलय-भूरि-विभा विभोस्ते
लोक-त्रये द्युतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती । प्रोद्यद्दिवाकर-निरन्तर-भूरि-संख्या
दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोम-सौम्याम् ।। स्वर्गापवर्ग-गम-मार्ग-विमार्गणेष्टः
सद्धर्म-तत्त्व-कथनैक-पटुस्त्रिलोक्याः । दिव्य-ध्वनिर्भवति ते विशदार्थ-सर्व
भाषा-स्वभाव-परिणाम-गुण-प्रयोज्यः ।। परन्तु बात यहाँ तक ही सीमित नहीं है । महामना डा० ज्योतिप्रसाद जैन का कहना है कि "दूसरी और, भक्तामर की कतिपय प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों में चार-चार श्लोकों के ४ विभिन्न गुच्छक प्रचलित ४८ श्लोकों के अतिरिक्त प्राप्त हुए हैं । इस प्रकार उनमें से प्रत्येक पाठ ५२ श्लोकी है और कुल प्राप्त श्लोकों की संख्या ६४ हो जाती है । किन्तु इन अतिरिक्त १६ श्लोकों के सम्बन्ध में प्राय: सभी मनीषियों का यह मत है कि भाषा, अर्थ, रचनाशैली, पुनरुक्ति दोष आदि अनेक कारणों से वे श्लोक मानतुंगकृत नहीं हो सकते, कालान्तर में विभिन्न लोंगो ने गढ़कर जोड़ दिये हैं"। डाक्टर साहब का यह कथन तो ठीक है, लेकिन इसमें तीन बातें छूट जाती हैं । यह सब विशेष गुच्छक विशेषकर दिगम्बर सम्प्रदाय के स्रोतों से ही मिले हैं; वे इन सभी चार प्रातिहार्यों से सम्बद्ध हैं जो भक्तामर के श्वेताम्बर पाठ में नहीं हैं; और वे सभी वसन्ततिलका-वृत्त में निबद्ध हैं । इस सन्दर्भ में ये तीनों तथ्य विचारणीय बन जाते हैं । इस विषय में विशेष कुछ कहने से पहले उन सब अतिरिक्त गुच्छकों को भी देख लेना आवश्यक है ।
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