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महावीर का पुनर्जन्म
प्रश्न वीर्य के प्रयोग का
चौथा दुर्लभ तत्त्व है - संयम में पराक्रम करना, वीर्य करना । कोई आदमी निर्वीर्य नहीं है। आदमी ही नहीं, कोई भी प्राणी निर्वीर्य नहीं है । प्रत्येक प्राणी वीर्य का प्रयोग करता है, शक्ति का प्रयोग करता है। वीर्य एक ऐसा तत्त्व है जो चेतन में ही नहीं, अचेतन में भी होता है । प्रत्येक पदार्थ वीर्यवान् है । आयुर्वेद में बल, वीर्य और विपाक का विशद वर्णन मिलता है । किस औषधि का कौन सा वीर्य है? शीत वीर्य औषधि है या ऊष्ण वीर्य औषधि है ? इसका पूरा विचार किया जाता है और उसके आधार पर औषधि का प्रयोग किया जाता है।
प्रत्येक प्राणी और पदार्थ में अपना-अपना वीर्य होता है। हर आदमी पुरुषार्थ करता है, वीर्य का प्रयोग करता है किन्तु अधिकांशतः वीर्य का प्रयोग असंयम में होता है, अविरति में होता है । वीर्य का प्रयोग इन्द्रियों को तृप्त करने में होता है, मनचाही बात करने में होता है किन्तु संयम में वीर्य का प्रयोग करना अत्यन्त दुर्लभ है । इन्द्रिय का निग्रह करने में, व्रत की आराधना करने में, अपने आपको संयत रखने में व्यक्ति अपनी शक्ति का उपयोग नहीं करता: क्या निवृत्ति अकर्मण्यता है ?
कुछ वर्ष पूर्व उदयपुर में एक विद्वान ने कहा- जैन लोग निवृत्ति की बात बहुत करते हैं। यह तो अकर्मण्यता है, निकम्मापन और निठल्लापन है । जैन दर्शन इसे इतना महत्व क्यों देता है? मैंने कहा – निवृत्ति अकर्मण्यता है, यह चिन्तन समीचीन नहीं है । निवृत्ति अकर्मण्यता है ही नहीं । निवृत्ति का अर्थ है महाप्रवृत्ति। जब तक आन्तरिक प्रवृत्ति की सघनता नहीं होती, आदमी निवृत्ति कर ही नहीं सकता ।
एक युवक से कहा जाए- तुम एक घंटे घूम आओ। वह इस कार्य को सहज रूप से सम्पादित कर देगा । यदि उससे कहा जाए- तुम एक घंटा तक प्रतिमा की भांति स्थिर बैठ जाओ । चाहे मक्खियां सताए, हवा, आंधी या गर्मी का अहसास हो, एकदम निष्प्रकम्प रहना है। वह व्यक्ति ऐसा कर ही नहीं पाएगा, स्थिर बैठना उसके लिए संभव नहीं होगा। हजारों आदमी एक घंटा तक घूमने वाले मिल जायेंगे पर प्रतिमा की भांति एक घंटा तक स्थिर बैठने वाले पांच-दस व्यक्तियों का मिल पाना भी कठिन है ।
चलना प्रवृत्ति है, स्थिर बैठना निवृत्ति है । प्रश्न होगा - निवृत्ति महाप्रवृत्ति है या प्रवृत्ति महाप्रवृत्ति ? चलना मुश्किल है या एक घंटा स्थिर बैठना ? एक व्यक्ति से कहा जाए - तुम्हें एक घंटे बोलना है, अमुक व्यक्ति से बातचीत करना है । वह इस प्रस्ताव को सहजता से स्वीकार कर लेगा । यदि उसे एक घंटा मौन करने के लिए कहा जाए तो वह इसे स्वीकार नहीं करेगा। महाप्रवृत्ति बोलना है या न बोलना ? निवृत्ति निष्क्रियता है, निठल्लापन है, यह सोचना भ्रांति है । इस भ्रांति का टूटना आवश्यक है ।
निवृत्ति महाप्रवृत्ति है । प्रवृत्ति में बाहर की सक्रियता ज्यादा होती है । निवृत्ति में आन्तरिक सक्रियता सघन बन जाती है। जब तक आन्तरिक सक्रियता सघन नहीं बनती तब तक निवृत्ति संभव नहीं होती । संजमम्मि य वीरियं - संयम
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