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महावीर का पुनर्जन्म
आचार्य ने कहा-'तुम समझे नहीं। पांच अरब आदमी कौन-सी बड़ी बात है। अगर १० अरब हो जाए तो भी कौन-सी बड़ी बात है! दुनिया के सारे जीवों को देखो। एक जीव हैं एकेन्द्रिय, एक इन्द्रिय वाले। तुम बतलाओ! वे दुनिया में कितने हैं?'
"भंते! वे तो दुनिया में अनन्त-अनन्त हैं। एक सुई की नोक टिके उतने स्थान में अनन्त-अनन्त जीव हैं।'
_ 'उनकी तुलना में मनुष्य कितने हैं! कहां अनन्त और कहां पांच अरब? कहीं कोई तुलना ही नहीं है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और अमनस्क पंचेन्द्रिय-इनका जगत् भी बहुत बड़ा है। इन सारी घाटियों को पार करने के बाद समनस्क पंचेन्द्रिय मनुष्य जन्म लेता है। क्या यह दुर्लभ नहीं है?'
वनस्पति में, निगोद में जीवों का अनन्त-अनन्त भंडार है। यदि उसमें कोई प्राणी गिर जाए, फंस जाए तो उसका निकलना अत्यन्त मुश्किल है। वहां से निकलने के बाद भी उसे अनेक दुर्गम घाटियों को पार करना पड़ता है।
मनुष्य जीवन दुर्लभ है, इस पर सारे धार्मिक लोग एकमत हैं। शंकराचार्य ने विवेक-चूड़ामणि में लिखा
दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् ।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः।। तीन चीजें बड़ी दुर्लभ हैं। वे देवानुग्रह से ही मिलती हैं-मनुष्यत्व, मुमुक्षत्व और महापुरुष का सम्पर्क। मनुष्य होना बड़ा दुर्लभ है। मुक्त होने की इच्छा पैदा होना है और महापुरुष का संपर्क मिलना भी बहुत दुर्लभ है। दुर्लभ है श्रुति
दूसरा दुर्लभ तत्त्व है-श्रुति। 'अध्यात्मश्रवणं श्रुतिः' श्रुति का अर्थ है-अध्यात्म का श्रवण। अध्यात्म की बात सुनना मुश्किल है। उसमें मन ही नहीं लगता। बातों में मन लग जाता है, रेडियो सुनने में बहुत मन लगता है। जब क्रिकेट की कामेंट्री आती है, लाखों-करोड़ों मनुष्य खाते-पीते समय भी रेडियो कान के पास रखते हैं, उसे छोड़ना ही नहीं चाहते। इसका कारण है-आम आदमी का उसके प्रति आकर्षण है। धर्म की बात में रस नहीं है, आकर्षण नहीं है। प्रश्न है आकर्षण का। क्या धर्म की बात में रस नहीं है? धर्म की बात कहने वाले रस पैदा करना नहीं जानते या धर्म की बात में रस पैदा नहीं किया जा सकता? धर्म की बात को भी सरस बनाया जा सकता है, यह निश्चित तथ्य है। नीरस बात कोई सुनना नहीं चाहता। चाहे वह धर्म की चर्चा हो, टी.वी. या रेडियो पर आने वाला कोई कार्यक्रम हो।
कादम्बरी का पूर्वार्द्ध बनाने वाले महाकवि बाणभट्ट का निधन हुआ। प्रश्न प्रस्तुत हुआ-उसके उत्तरार्द्ध को कौन बनाए? निश्चय किया गया जिसके काव्य में सरसता है, वह बनाए। विद्वानों की संगीति हुई। दो विद्वानों को इस कार्य के लिए चुना गया। समस्या दी गई-सूखा काठ खड़ा है, इसकी संस्कृत में पूर्ति करो। एक बोला-शुष्कं काष्ठं तिष्ठत्यग्रे। दूसरा बोला-नीरसतरुरिह
विलसति पुरतः। पहला काव्य क्लिष्ट और नीरस था। दूसरा काव्य सहज और Jain Education International For Private & Personal Use Only
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