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दुर्लभ संयोग
आचार्य के उपनिषद् में तत्त्वचर्चा हो रही थी। प्रसंग चला दुर्लभ का। आचार्य ने पूछा-'बताओ! इस दुनिया में दुर्लभ क्या है?'
एक शिष्य बोला-'भंते! कल्पवृक्ष बहुत दुर्लभ है। मनुष्य की जो कल्पना है, कामना है, उसे कल्पवृक्ष पूरी कर देता है।'
दूसरा शिष्य बोला-'भंते! मेरी दृष्टि में चिन्तामणि रत्न दुर्लभ है। वह पास में हो तो कहीं जाने की जरूरत नहीं होती। व्यक्ति की हर चाह को पूरी कर देता है।'
तीसरा शिष्य बोला-'भंते! मेरी दृष्टि में कामधेनु दुर्लभ है। वह कामनाओं को पूरा कर देती है। वह व्यक्ति के पास अपने आप आती है, उसे बुलाने नहीं जाना पड़ता।'
चौथा शिष्य बोला-'भंते ! मेरी दृष्टि में दुर्लभ है देव दर्शन। अगर देवता दर्शन दे दे तो कामधेनु, चिन्तामणि रत्न, कल्पवृक्ष-ये सारी बातें पूरी हो जाती हैं।'
एक शिष्य बोला-'भंते ! 'दुर्लभं भारते जन्म' मेरी दृष्टि में भरत क्षेत्र में जन्म लेना दुर्लभ है। अगर यह हो जाए तो ये सारी बातें मिल जाए।'
अपनी अपनी मति और अपना अपना विचार। आचार्य ने कहा- ठीक है तुम्हारा चिन्तन। पर और भी कुछ दुर्लभ है।' "भंते! कृपा कर आप ही बताएं, और क्या दुर्लभ है?'
गुरु ने कहा-प्राणी के लिए चार तत्त्व दुर्लभ हैं-मनुष्य का जन्म, श्रुति, श्रद्धा और संयम में पराक्रम करना।
चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो।
माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि य वीरियं।। दुर्लभ है मनुष्य जन्म
शिष्य बोला-'भंते! आजकल तो परिवार नियोजन पर बल दिया जा रहा है। बेशुमार आबादी बढ़ रही है। वैज्ञानिक चिन्तित हैं कि आबादी को कैसे रोका जाए? इस स्तर से आबादी बढ़ती चली गई तो आदमी आदमी से सटकर चलेगा। उसे खाने को अन्न, रहने का स्थान और पैर पसारने को अवकाश नहीं मिलेगा। विश्व मनुष्यों से संकुल हो जाएगा। सारे राष्ट्र परिवार नियोजन की चिन्ता में लगे हुए हैं। आबादी पर नियन्त्रण किया जाए, रोक लगाई जाए, यह स्वर सर्वत्र उभर रहा है। मनुष्य जन्म दुर्लभ कहां है?'
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