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संबंधों के आलोक में गुरु और शिष्य गया-वह गुरु के प्रति प्रेम और अनुराग से रक्त होता है। तुम गुरु के साथ प्रीति बनाओ। ज्यादा समस्याएं अप्रीति के कारण होती हैं। यदि प्रीति की स्थापना नहीं होती है तो छोटी बात बहुत बड़ी बन जाती है और प्रीति होती है तो बड़ी बात भी कभी-कभी बहुत छोटी बन जाती है। राई कभी पहाड़ और कभी पहाड़ राई बन जाता है।
शिष्य ने पूछा-भंते! प्रीति कैसे करूं?
स्थविर ने एक ऐतिहासिक उदाहरण सुनाया भिक्षु और भारीमाल का। यह इतिहास का एक विचित्र उदाहरण है। एक छोटा बालक समस्या से घिर गया। पिता कहता है-मैं तुम्हें ले जाऊंगा। बालक कहता है-मैं नहीं जाऊंगा, अपने गुरु के पास रहूंगा। पिता ले जाना चाहता है और बालक जाना नहीं चाहता। पिता उसे जबर्दस्ती ले जाता है। वह बाल साधु सब कुछ छोड़ देता है, खाने-पीने का परित्याग कर देता है गुरु को पाने के लिए। पिता पराजित हो जाता है और बाल मुनि को गुरु चरणों में ला सौंप देता है। ऐसी प्रीति और ऐसी गहरी भक्ति हो गरु के प्रति।
स्थविर ने दूसरा उदाहरण दिया मुनि कनक का। वह भी दस वर्ष का छोटा बालक। भिक्षु-भारीमाल की घटना जैसे पुनरावृत्त हुई। पिता ले जाना चाहता है और बाल मुनि कनक गुरु के पास रहना चाहता है। पिता के साथ लंबे संघर्ष के पश्चात् विजय बाल मुनि की होती है। जब इस प्रकार की प्रीति स्थापित होती है, शिष्य गुरु से जुड़ जाता है। बांधती है विनम्रता
तीसरा गुर है-विनम्रता। विनम्रता सीखो। गुरु के सामने झुक जाओ। नम्रता में विचित्र शक्ति होती है। वह बांधती है व्यक्ति को।
जावद, मालवा में पूज्य कालूगणी विराज रहे थे। किसी बात के कारण मेरे विद्या गुरु तुलसी मुझसे (आचार्य महाप्रज्ञ) नाराज हो गए। बड़ी समस्या थी मुनि तुलसी को राजी करना। रात को प्रतिक्रमण कर मैंने मुनि तुलसी को वंदना की और उनके पैर पकड़ कर बैठ गया। मैं उस मुद्रा में तब तक बैठा रहा जब तक सोने का समय नहीं हो गया। लगभग तीन घंटे तक न मैं बोला और न मुनि तुलसी बोले। कोई नहीं बोला। यह भोलेपन की बात हो सकती है। इतना भोलापन शायद आज का व्यक्ति नहीं कर सकता। आज बहुत होशियारी बढ़ गई है पर विनम्रता व्यक्ति को जितना बांध सकती है, उद्दण्डता कभी नहीं बांध सकती! उद्दण्डता बंधे हुए व्यक्ति को तोड़ देती है। शरीर में भी कड़ापन आता है तो समस्याएं पैदा हो जाती हैं। कायोत्सर्ग की अवस्था में कोई व्यक्ति गिर जाता है तो भी हड्डी नहीं टूटती। अगर हड्डी में कड़ापन है तो थोड़ा सा गिरते ही वह टूट जाएगी। आजकल हड्डी बहुत जल्दी टूटती है। लगता है-हड्डी के साथ उद्दण्डता भी काम कर रही है। शरीर में कड़ापन ज्यादा आ गया। हड्डियों में भी वह स्नेह नहीं रहा, लचीलापन कम हो गया। जब लचीलापन कम होता है, कड़ापन आता है तो खुरदरापन आ जाता है। खुरदरी हड्डी खिरने लगती है
या टूट जाती है। Jain Education International
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