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द्वितीय अध्याय साहित्यिक साक्ष्य
पावा शब्द की व्युत्पत्ति, नगरी की महत्ता एवं इसके पतन पर प्रकाश डालने के पश्चात् क्रमशः जैन एवं बौद्ध साहित्य में पावा के विषय में उपलब्ध तथ्यों को प्रस्तुत करेंगे।
पावा विषयक जैन और बौद्ध साहित्य का विवेचन करने के क्रम में हम सर्वप्रथम दोनों परम्पराओं के एक-एक ग्रन्थ क्रमशः 'जैनागम' कल्पसूत्र और बौद्धग्रन्थ 'दीघनिकाय' के 'महापरिनिव्वाण' में उपलब्ध तद्विषयक सामग्री का अवलोकन करेंगे। निश्चित रूप से इनमें वर्णित तथ्य दोनों परम्पराओं में तद्विषयक प्राप्त सामग्री का पूर्ण परिचय देते हैं और इस दृष्टि से इन्हें प्रतिनिधि ग्रन्थ कहा जा सकता है।
भद्रबाहु रचित कल्पसूत्र' ( वी० नि० सं० ९८० या सन् ४५३ ) में पावा को 'मज्झिमापावा' नाम से सम्बोधित किया गया है। प्रतीत होता है कि पावा नाम की कई नगरियों के विद्यमान होने से महावीर की निर्वाणस्थली पावा को मज्झिमापावा नाम से निर्दिष्ट किया गया है। अन्य पावा नगरियों से पार्थक्य बोध हेतु ही इसके तत्कालीन शासक हस्तिपाल राजा का भी उल्लेख है । इसके अनुसार ( सूत्र १२१-१२२ )२ जनपदों का विहार करते हुए महावीर ने अन्तिम ४२वाँ चातुर्मास पावापुरी के हस्तिपाल राजा की पुरानी रज्जुकशाला में बिताया । सूत्र १२३ में वर्णित है कि वहाँ मज्झिमापावा में चातुर्मास के सातवें पक्ष में महावीर कालधर्म को प्राप्त हुए। सूत्र १२४ के अनुसार उस समय देवदेवियों के आगमन से रात्रि अत्यन्त प्रकाशमयी हो गयी। १२८ वें सूत्र में उल्लेख है कि जब महावीर कालधर्म को प्राप्त हुए तो उस रात्रि में काशी-कोशल देश के ( कासी-कोसलगा) ९ मल्ल और ९ लिच्छवी १८ गणराज्यों ने यह कहकर दीपावली प्रज्ज्वलित की कि ज्ञान ज्योति अस्त
१. कल्पसूत्र, सूत्र १२१ २. वही, सूत्र १२१-१२२ ३. वही, सूत्र १२३
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