________________
९० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श अस्तित्व की कहीं चर्चा नहीं की है। वास्तविकता तो यह है कि प्रायः सभी जैन ग्रंथकार (नियुक्ति चणि, भाष्य आदि लेखक) पावा या मज्झिमा पावा में महावीर के निर्वाण प्रसंग को लिखने वाले, पश्चिम भारत में, अधिकतर गुजरात, काठियावाड़ में लगभग ७वीं से १२वीं शताब्दी में पैदा हुए हैं और पूर्व भारत के तत्कालीन अशान्त राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उनका सम्पर्क पूर्वी तथा उत्तरी भारत से बिल्कुल टूट गया था। भारतवर्ष में एक केन्द्रीय शासक न था। सौ, दो सौ वर्ष के लिए किसी एक छोटे राजबंधा का उदय होता था और बाद में निर्बल शक्ति के कारण उसका विलय हो जाता था। भारत टुकड़ों में बंटा हआ था। उस काल को सम्राटों की वाक्ति के लिए संघर्ष का युग कहते हैं। उसी काल में, पूर्व और उत्तर, मध्य भारत के अधिकांश भागों में नये-नये ब्राह्मणमतों के आविर्भाव हुए. थे। उन्हें राजकीय संरक्षण मिलने के कारण, जैन धर्मावलम्बियों का अस्तित्व प्रायः समाप्त हो चुका था। बंगाल-बिहार में उसी समय पाल राजवंश के उदय होने से जहाँ बौद्ध धर्म को राज्य संरक्षण प्राप्त था, वहीं जैनधर्म निराश्रय हो रहा था।
१३वीं, १४वीं शताब्दी में मुस्लिम सत्ता के प्रभाव के बढ़ने के कारण, उक्त प्रदेशों की राजनैतिक दशा में सुधार हुआ। इसी कारण उस काल में. स्थानीय धार्मिक विद्वेष एवं कट्टरता में कमी प्रतीत होती है । इन शताब्दियों. में मुस्लिम राजाश्रय से व्यापार करने वाले या राजकीय पदों पर काम करने वाले पश्चिमी भारत के अनेक जैन प्रवासी पूर्वी भारत में ताँबा, लोहा, अभ्रक आदि अनेक खनिज व्यापार के लिए दक्षिण बिहार और बंगाल प्रदेश में फैलने लगे, इन प्रदेशों में उनका आवागमन बढ़ गया था तथा उन प्रान्तों में वे फैलने लगे थे। इसी क्रम में वे अपने नैमित्तिक पूजा आराधना के लिए मूर्तियों, मन्दिरों और तीर्थ स्थलों का निर्माण करने लगे। इस कार्य में मारवाड़, गुजरात के लोगों का प्रमुख हाथ था। ये सब तीर्थस्थलियां दक्षिण बिहार बंगाल के प्रमुख मार्गों, नदियों से आवागमन के मुख्य केन्द्रों, पहाड़ों आदि पर स्थापित की गयी थी, जैसे-गया, पटना, मुंगेर, हजारीबाग, सिंहभूमि इत्यादि। इसका एकमात्र कारण यही था कि इस व्यापारिक वर्ग का अधिकतर आना-जाना और रहना, उन्हीं स्थानों पर होता था। उत्तर-पूर्व भारत में ऐसी कोई खनिज सम्पत्ति भथवा व्यापार हेतु कोई आकर्षक वस्तु उपलब्ध नहीं थी, जिससे उन जैन प्रवासियों का दल उस काल में उत्तर-पूर्व भारत में गया होता। इसी कारण पूर्व भारत में ही जैन मन्दिरों की विशेषतः स्थापना हुई, एवं बिहार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org