________________
पावा-पड़रौना अनुशीलन : ९९ सुत्तनिपात' (जो भाषा और विषय की दृष्टि से पालि भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ है) के परायणवग्ग के अनुसार पावा उत्तर भारत में श्रावस्ती से कुशीनगर और कुशीनगर से वैशाली जाने वाले मुख्य व्यापार मार्ग पर था। 'सुमंगल विलासिनी'२ से ज्ञात होता है कि पावा कुशीनगर से ३ गव्यति (१२ मील) की दूरी पर स्थित था। अमरकोश के अनुसार गव्यूति ४ मील के बराबर है । सिंहली बौद्धग्रन्थ दीपवंस एवं महावंस के अनुसार 'कुशीनगर से १२ मील दूर मण्डकी नदी की दिशा में पावा स्थित थी। टर्नर ने भी स्वीकार किया है-कुशीनगर से पावा की दूरी १२ मील है। मललसेकर भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं एवं बौद्ध साहित्य में अनेक बार कुशीनगर-पावा मार्ग का वर्णन प्राप्त होने का उल्लेख करते हैं।
पडरौना के पी० डब्ल्य० डी० डाक बंगले से कसया पी० डब्ल्य० डी० डाक बंगले की दूरी १२ मील है। पड़रौना डाक बंगला के निकट जहाँ मील का पत्थर है, वहाँ से छावनी के निकट स्थित टीले की दूरी एक मील है। कसया से कुशीनगर के खण्डहरों की दूरी एक मील है। इस प्रकार पड़रौना वाले स्तूप (टीले से) कुशीनगर के स्तूप (टीले) की दूरी १२ मील है जो भौगोलिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक तर्कसंगत प्रतीत होती है।
धरातल के परिवर्तन में बाह्य और आन्तरिक शक्तियों : प्रकृति, वर्षा, जलवायु, तापमान, भूकम्प आदि का सदैव निर्णायक योगदान रहा है। पड़रौना ( पावा ) के साथ भी यही स्थिति रही है। पड़रौना (पावा) के निकट छावनी के पास स्थित प्राचीन टीले के आस-पास बुद्ध
१. सुत्तनिपात-परायणवग्ग पद, १०११, १०१५, पृ० ४३२ । २. सुमंगल विलासिनी, पृ० २८२ । ३. गव्यतिस्तुक्रोशयुगलम्-अमरकोश,
मोतीलाल बनारसीदास दिल्ली, १९८४ । ४. डा० पाण्डेय, राजबली-गोरखपुर जनपद और उसको क्षत्रिय जातियों का
इतिहास, पृ० ७८ । ५. टर्नर, जो०-जर्नल आव एशियाटिक सोसाइटी आव बंगाल, नं० ७९, भाग २,
पृ० ७, कलकत्ता-१६८३८ । ६. मललसेकर, जी० पी०, डिक्शनरी आव पालिप्रापरनेम्स, पृ० १९३ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org