Book Title: Mahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Author(s): Bhagwati Prasad Khetan
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 217
________________ उपसंहार : १९७ ३. सारनाथ-बुद्ध धर्म-चक्र प्रवर्तन । ४. कुशीनगर-बुद्ध का परिनिर्वाण स्थल । जिस प्रकार बौद्ध परम्परा में बुद्ध से सम्बन्धित उपयुक्त स्थल तीर्थस्थलों के रूप में मान्य हैं, उसी प्रकार जैन परम्परा में भी क्षत्रियकुण्ड को महावीर के जन्म एवं दीक्षास्थल के रूप में, ऋजुबालिका नदी के तट को महावीर के कैवल्य प्राप्ति के स्थान के रूप में, राजगृह अथवा पावा, महावीर के धर्मसंघ स्थापना के रूप में एवं पावा को निर्वाण स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर परम्परा जहाँ पावा को तीर्थप्रवर्तन स्थल के रूप में मान्य करती है वहाँ दिगम्बर परम्परा राज़गृह को तीर्थप्रवर्तन स्थल मानती है। इस एक मत वैभिन्न्य को छोड़कर साहित्यिक दृष्टि से ये सब स्थल सुनिश्चित हैं किन्तु इनकी भौगोलिक अवस्थित के बारे में राजगृह को छोड़कर अन्य किसी के भी विषय में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। प्रश्न उपस्थित होता है कि जहाँ बुद्ध से सम्बन्धित पवित्र स्थलों की पहचान सुनिश्चित बनी रही वहाँ महावीर के जीवन से सम्बन्धित पवित्र स्थल क्यों विस्मृति के गर्भ में चले गये । हमारी दृष्टि में इसके अनेक कारण थे। सर्वप्रथम तो इसका कारण यह रहा कि बौद्ध धर्म में बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् उनकी पवित्र अस्थियों पर, उनके जीवन से सम्बन्धित विशिष्ट स्थलों पर उनके स्तुपों का निर्माण किया गया। इस निर्माण के लगभग १५० वर्ष के पश्चात् ही पुनः उनका जीर्णोद्धार करवाकर अशोक के द्वारा वहाँ स्तम्भ स्थापित किये गये। साथ ही बौद्ध भिक्षुओं ने इन स्थलों को केन्द्र बनाकर वहाँ पर भिक्षुओं के आवास, ध्यान, अध्ययन आदि के लिए विहारों का निर्माण करवाया। जब कि महावीर के परिनिर्वाण के पश्चात् उनकी अस्थियों आदि पर इस प्रकार का कोई भी निर्माण कार्य नहीं हो पाया। यह प्रश्न हो सकता है कि आखिर महावीर के अस्थिस्थलों पर इस प्रकार के निर्माण कार्य क्यों नहीं हुये? ___ वस्तुतः इसका कारण जैनमुनि की आचार-संहिता थी जब कि स्वयं बुद्ध और बौद्ध भिक्षु, बुद्ध के जीवनकाल से ही भिक्षु-आवासों आदि के निर्माण में रुचि लेने लगे थे। बुद्ध के जीवन काल में ऐसे अनेक विहारों का निर्माण हो चुका था। अतः बुद्ध के निर्वाण पर इसप्रकार के निर्माणों को करवाना और उनका प्रेरक बनका बौद्ध भिक्षुओं के लिए स्वाभाविक ही था। जैन ग्रन्थ आचारांग और सूत्रकृतांग से ज्ञात होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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